द लोकतंत्र : सनातन धर्म में शनिवार का दिन न्याय के देवता और कर्मफल दाता भगवान शनि देव को समर्पित है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, शनि देव मनुष्य को उसके कर्मों के आधार पर शुभ और अशुभ फल प्रदान करते हैं। जहाँ इस दिन शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए पूजा और दान का विशेष महत्व है, वहीं शास्त्रों में कुछ विशिष्ट वस्तुओं के दान को पूर्णतः वर्जित बताया या है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इन निषिद्ध वस्तुओं का दान पुण्य देने के बजाय शनि देव के कोप का कारण बन सकता है।
ग्रह विरोध और दान की सावधानी: वर्जित 5 वस्तुएं
ज्योतिष शास्त्र के गहन अध्ययन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि शनि का अन्य ग्रहों के साथ संबंध ही दान की प्रकृति निर्धारित करता है:
- सफेद वस्तुएं: सफेद रंग का संबंध चंद्रमा से है। ज्योतिष में चंद्रमा और शनि के मध्य गहरा विरोध माना गया है। **अत: शनिवार को दूध, चावल या सफेद वस्त्रों का दान आत्मा और मन के द्वंद्व को बढ़ा सकता है।
- लाल वस्तुएं: लाल रंग ऊर्जा के प्रतीक सूर्य एवं मंगल से जुड़ा है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार, सूर्य और शनि पिता-पुत्र होते हुए भी परस्पर शत्रु हैं। इस दिन लाल फल या वस्त्र दान करने से पारिवारिक कलह की आशंका बढ़ती है।
- पीली वस्तुएं: पीला रंग देवगुरु बृहस्पति का प्रतीक है। शनि और गुरु का शत्रु भाव होने के कारण शनिवार को हल्दी, सोना या बेसन का दान ज्ञान और समृद्धि में बाधक माना जाता है।
- प्लास्टिक और कांच: आधुनिक ज्योतिष में प्लास्टिक और कांच का संबंध शनि और राहु से जोड़ा जाता है। इनका अव्यवस्थित दान करियर में स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
- नमक: नमक का दान शनिवार को आर्थिक क्षय और ऋण वृद्धि का कारक माना जाता है। यह मानसिक अशांति को भी जन्म देता है।
तार्किक विश्लेषण
ज्योतिषविदों का तर्क है कि दान हमेशा ग्रहों की प्रकृति के अनुरूप होना चाहिए। जहाँ काले तिल, सरसों का तेल और लोहे का दान शनि दोष को शांत करता है, वहीं ऊपर वर्णित वस्तुएं ऊर्जा के प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं।
संस्कार और आध्यात्मिक चेतना
आधुनिक समय में अंधविश्वास और श्रद्धा के बीच की रेखा पतली होती जा रही है। किंतु, पारंपरिक मान्यताओं का उद्देश्य मनुष्य को अनुशासित करना और प्रकृति के नियमों के प्रति संवेदनशील बनाना है। इन नियमों का पालन व्यक्तिगत शांति के साथ-साथ पारिवारिक सद्भाव बनाए रखने में भी सहायक होता है।
निष्कर्षतः, शनि देव की पूजा में शुद्ध अंतःकरण और शास्त्रोक्त नियमों का पालन ही सफलता की कुंजी है। अज्ञानता में किया गया दान कभी-कभी लाभ के स्थान पर हानि पहुंचा सकता है, अत: सतर्कता अपेक्षित है।
डिस्क्लेमर: इस न्यूज में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है। द लोकतंत्र इसकी पुष्टि नहीं करता है।

