द लोकतंत्र : शारदीय नवरात्रि 2025 पूरे भारत में बड़े ही उत्साह और भक्तिभाव के साथ मनाई जा रही है। उत्तर भारत में जहां इसे नवरात्रि व्रत और पूजा के रूप में मनाया जाता है, वहीं बंगाल में दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, दुर्गा पूजा आश्विन मास की षष्ठी तिथि से शुरू होकर विजयादशमी तक चलती है। इस दौरान महाषष्ठी, महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी और विजयादशमी विशेष महत्व रखते हैं।
महाअष्टमी का दिन देवी उपासना के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर धर्म की रक्षा की थी। महाअष्टमी पर होने वाली संधि पूजा का महत्व विशेष है, क्योंकि इसी समय देवी ने चंड और मुंड नामक राक्षसों का वध कर चामुंडा रूप धारण किया था।
संधि पूजा का समय (Sandhi Puja Muhurat 2025)
इस वर्ष महाअष्टमी तिथि की शुरुआत 29 सितंबर 2025 को शाम 4:31 बजे हुई और इसका समापन 30 सितंबर 2025 को शाम 6:06 बजे होगा।
संधि पूजा अष्टमी तिथि के अंतिम क्षण और नवमी तिथि की शुरुआत के बीच की जाती है।
आज यानी 30 सितंबर को संधि पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:42 बजे से शुरू होकर शाम 6:30 बजे तक रहेगा।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अष्टमी के अंतिम 24 मिनट और नवमी के शुरुआती 24 मिनट संधि पूजा के लिए सबसे उत्तम समय माना जाता है। इस दौरान देवी की उपासना से भक्तों को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
महाअष्टमी पर संधि पूजा का महत्व
पंचांग के अनुसार, संधि पूजा नवरात्रि के सबसे पवित्र अनुष्ठानों में से एक है। इसे अष्टमी और नवमी का संयोग माना जाता है और यह समय अत्यंत शुभ होता है। पूजा के दौरान मां दुर्गा को 108 लाल कमल अर्पित किए जाते हैं और 108 दीपक जलाए जाते हैं। यह प्रतीक है कि भक्त अपने जीवन से अंधकार को दूर कर ज्ञान और सकारात्मकता का स्वागत कर रहे हैं।
संधि पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि यह यह दर्शाती है कि जीवन में हर परिवर्तन (अष्टमी से नवमी का संयोग) एक नई ऊर्जा और नई शुरुआत लेकर आता है। माना जाता है कि इस समय की गई पूजा से साधक को शक्ति, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद मिलता है।
इस प्रकार महाअष्टमी पर संधि पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि यह आत्मिक शक्ति और दिव्य ऊर्जा प्राप्त करने का विशेष अवसर है।

