द लोकतंत्र: भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन को पूरे देश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। भक्त इस दिन व्रत रखकर श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। साल 2025 में भी जन्माष्टमी का पर्व बेहद उल्लास और आस्था के साथ मनाया जा रहा है।
जन्माष्टमी व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा का राजा कंस अत्यंत क्रूर और अत्याचारी शासक था। वह अपनी बहन देवकी से बेहद प्रेम करता था। देवकी का विवाह वासुदेव से हुआ, लेकिन विवाह के बाद आकाशवाणी हुई कि देवकी की आठवीं संतान ही कंस का वध करेगी।
यह सुनकर कंस घबरा गया और उसने अपनी बहन और बहनोई को कारागार में डाल दिया। देवकी और वासुदेव की सात संतानों को कंस ने निर्दयता से मार दिया। सातवीं संतान को योगमाया ने सुरक्षित कर माता रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया। जब आठवीं संतान का जन्म हुआ तो कारागार में अलौकिक प्रकाश फैल गया, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और द्वार अपने आप खुल गए।
वासुदेव ने नवजात शिशु को गोकुल में नंद-यशोदा के घर पहुंचाया और उनकी कन्या को कारागार में छोड़ दिया। यही आठवीं संतान भगवान श्रीकृष्ण थे, जिन्होंने बड़े होकर अत्याचारी कंस का वध किया और मथुरा वासियों को उसके आतंक से मुक्त कराया।
व्रत और पूजन का महत्व
जन्माष्टमी पर व्रत रखने का विशेष महत्व है। भक्त उपवास रखते हैं और रात 12 बजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण किया जाता है और घर-घर में झांकियां सजाई जाती हैं।
व्रत रखने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और मन की शुद्धि होती है। पौराणिक मान्यता है कि जो श्रद्धालु पूरे नियम से इस व्रत का पालन करता है, उसे भगवान कृष्ण का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
आध्यात्मिक संदेश
श्रीकृष्ण जन्म कथा हमें यह सिखाती है कि अधर्म कितना भी बलवान क्यों न हो, अंततः धर्म की ही विजय होती है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि जीवन में नैतिकता, प्रेम और करुणा का संदेश भी देता है।