द लोकतंत्र : गुजरात के भरूच जिले में स्थित स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव के अलौकिक चमत्कार का एक जीता-जागता प्रमाण है। यह मंदिर अपनी अद्वितीय विशेषता के लिए विख्यात है, जहाँ समुद्र देव स्वयं दिन में दो बार महाकाल का जलाभिषेक करते हैं, जिसके कारण पूरा मंदिर जलमग्न हो जाता है। धार्मिक ग्रंथों, जैसे स्कंद पुराण और शिव पुराण की रूद्र सहिंता, में भी इस स्थान का विस्तृत वर्णन मिलता है।
मंदिर का रहस्य और ज्वार-भाटा
स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर में यह घटना प्राकृतिक ज्वार-भाटा (Tidal Phenomenon) के कारण घटित होती है, जिसे भक्तगण महादेव का चमत्कार मानते हैं।
- जलमग्नता की अवधि: मंदिर के कर्मचारी बताते हैं कि यह मंदिर 24 में से 12 घंटे जलमग्न रहता है और शेष 12 घंटे भक्तों के दर्शन के लिए खुला रहता है। गुजराती तिथि को ध्यान में रखते हुए ज्वारभाटा का समय हर दिन अलग होता है।
- दर्शन की व्यवस्था: यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को प्रतिदिन एक विशेष टिकट दिया जाता है, जिस पर ज्वारभाटे की सटीक समयावली लिखी होती है, ताकि वे जलस्तर कम होने के बाद ही सुरक्षित रूप से शिवलिंग के दर्शन कर सकें।
- दिव्य मान्यता: स्कंद पुराण के अनुसार, यहाँ समुद्र में पाँच शिवलिंग स्थापित हैं, जिनमें से दो प्राकट्य हैं। ऐसी मान्यता है कि यहाँ शिवलिंग की पूजा और अभिषेक करने से इंसान की सारी इच्छाएँ पूर्ण हो सकती हैं।
पौराणिक कथा: ताड़कासुर वध का प्रायश्चित
स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर के निर्माण के पीछे शिव पुराण में वर्णित एक गहन कथा है, जो कार्तिकेय से जुड़ी है।
- ताड़कासुर का वरदान: ताड़कासुर नामक एक असुर ने अपनी कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था और उनसे यह मनचाहा वरदान प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र के हाथों ही संभव हो।
- अत्याचार और वध: वरदान प्राप्त होते ही ताड़कासुर ने अत्याचार बढ़ा दिया। तब सभी देवी-देवताओं की प्रार्थना पर कार्तिकेय का जन्म हुआ और उन्होंने वीरतापूर्वक ताड़कासुर का वध किया।
- प्रायश्चित: वध के बाद कार्तिकेय को यह जानकर गहरा दुख हुआ कि ताड़कासुर भगवान शिव का परम भक्त था। तब भगवान विष्णु ने उन्हें प्रायश्चित का उपाय बताया। विष्णु जी के कहे अनुसार, कार्तिकेय ने उसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की, जहाँ उन्होंने असुर का वध किया था।
- स्थापना और अभिषेक: मान्यता है कि यह शिवलिंग स्वयं भगवान कार्तिकेय द्वारा स्थापित किया गया था, और तभी से समुद्र देवता यहाँ आकर दिन में दो बार शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं, जो आज भी एक अखंड परंपरा के रूप में जारी है।
स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर आस्था, इतिहास और प्राकृतिक विज्ञान के बीच एक अद्भुत सेतु का काम करता है, जो भक्तों को ईश्वर की शक्ति का अनुभव कराता है।

