द लोकतंत्र: हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान तिलक का विशेष महत्व माना गया है। विशेषकर शिवभक्तों द्वारा लगाए जाने वाले त्रिपुंड तिलक को ईश्वर का आशीर्वाद और महादेव का महाप्रसाद माना जाता है। यह तिलक तीन क्षैतिज रेखाओं वाला होता है, जिसे भस्म या चंदन से माथे पर लगाया जाता है।
त्रिपुंड का धार्मिक महत्व:
हरिद्वार स्थित गंगा सभा के सचिव और विद्वान पंडित उज्जवल के अनुसार, त्रिपुंड भगवान शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक है। वासुदेवोपनिषद में इसे त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश), तीन व्याहृती और तीन छंदों से जोड़ा गया है। त्रिपुंड न केवल पवित्रता और योग का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मज्ञान का मार्ग भी दिखाता है।
त्रिपुंड की तीन रेखाएं भी विशेष महत्व रखती हैं:
ऊपरी रेखा: देवगुरु बृहस्पति
मध्य रेखा: शनि देव
निचली रेखा: सूर्य देव
त्रिपुंड लगाने के लाभ:
शिव पुराण में उल्लेख है कि त्रिपुंड का दर्शन मात्र करने से भी अशुभ दूर हो जाते हैं। भस्म से लगाए गए त्रिपुंड को सबसे पुण्यदायक माना गया है। इसे लगाने से मानसिक शांति, दीर्घायु, और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है। आयु, आरोग्य और तेज में वृद्धि होती है।
त्रिपुंड लगाने की विधि:
तन-मन से शुद्ध होकर त्रिपुंड लगाना चाहिए।
पहले भस्म या चंदन शिवलिंग पर अर्पित करें, फिर बची हुई भस्म को प्रसाद रूप में माथे पर लगाएं।
तर्जनी, मध्यमा और अनामिका अंगुलियों से बाएं से दाएं रेखाएं खींचें।
तिलक लगाते समय मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
त्रिपुंड लगाने का मंत्र:
भस्म लगाने से पहले इस मंत्र का जाप करें:
ॐ अग्निरिति भस्म। ॐ वायुरिति भस्म। ॐ जलमिति भस्म। ॐ व्योमेति भस्म। ॐ सर्वं ह वा इदं भस्म। ॐ मन एतानि चक्षूंषि भस्मानीति।
तत्पश्चात यह मंत्र पढ़ते हुए त्रिपुंड लगाएं:
ॐ त्रयायुषं जमदग्नेरिति ललाटे।
ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषमिति ग्रीवायाम्।
ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति भुजायाम्।
ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषमिति हृदये।
त्रिपुंड का विशेष उपाय:
यदि कुंडली में चंद्र दोष है, तो सावन के सोमवार को भगवान शिव को चंदन का त्रिपुंड लगाएं और उसी चंदन को माथे पर धारण करें। यह उपाय मानसिक शांति और चंद्र दोष निवारण में सहायक होता है।