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Telegram बना आतंक की नई सुरक्षित गुफा: दिल्ली कार ब्लास्ट से एन्क्रिप्शन और राष्ट्रीय सुरक्षा पर उठा गंभीर विवाद

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द लोकतंत्र : दिल्ली में हुए हालिया कार ब्लास्ट में एक आत्मघाती हमलावर, डॉक्टर उमर मोहम्मद, का नाम सामने आने के बाद Telegram मैसेजिंग ऐप पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार, उमर जैश-ए-मोहम्मद (JeM) से जुड़े एक गुप्त Telegram ग्रुप में सक्रिय था, जहाँ आतंकी गतिविधियों की योजना बनाई जाती थी। यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि निजी संवाद (प्राइवेसी) की सुरक्षा का दावा करने वाले ये प्लेटफॉर्म अब आतंकवाद, अपराध और चरमपंथी प्रचार का नया केंद्र बन गए हैं।

लोकप्रियता से दुर्भावना तक

Telegram की शुरुआत 2013 में रूसी अरबपति पावेल ड्यूरोव ने की थी। इसकी प्रमुख विशेषताएँ जैसे एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन और बड़े ग्रुप्स (चैनल्स) बनाने की क्षमता ने इसे करोड़ों उपयोगकर्ताओं के बीच लोकप्रिय बना दिया। हालाँकि, 2015 पेरिस आतंकी हमले के बाद से ही इसके दुरुपयोग की खबरें आने लगीं। ISIS, अल-कायदा और अन्य आतंकवादी संगठनों ने इसे अपने प्रचार, फंड जुटाने और नई भर्ती के लिए एक सुरक्षित मंच बना लिया, क्योंकि यहाँ मॉडरेशन (Moderation) की कमी है।

आधिकारिक रुख: सहयोग की शर्त

यद्यपि Telegram ने सार्वजनिक रूप से हिंसा या आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले कंटेंट को हटाने की बात कही है, सरकारों और जाँच एजेंसियों के साथ सहयोग का इसका इतिहास विवादित रहा है। कंपनी के संस्थापक पावेल ड्यूरोव का स्पष्ट मत है कि वे उन सरकारी आदेशों को मानने से इनकार करते हैं जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्राइवेसी के सिद्धांतों के खिलाफ हों। Telegram ने दावा किया है कि वह भारत के आईटी अधिनियम 2021 का पालन कर रहा है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में डेटा साझा करने पर उसकी सीमित नीति हमेशा संदेह के घेरे में रही है।

विशेषज्ञों की राय: प्राइवेसी या ढाल?

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, Telegram के विशिष्ट फीचर्स—जैसे सीक्रेट चैट्स में एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन, सेल्फ-डिस्ट्रक्टिंग मैसेजेज और क्लाउड बेस्ड चैट्स—जो सामान्य उपयोगकर्ताओं के लिए प्राइवेसी का ढाल हैं, वही अपराधियों के लिए एक डिजिटल छिपने की जगह बन गए हैं। एक हालिया न्यूयॉर्क टाइम्स जांच में भी खुलासा हुआ कि लाखों चैनलों में खुलेआम हथियारों की बिक्री, ड्रग्स तस्करी और चरमपंथी प्रचार चल रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनी द्वारा बहुत सीमित डेटा रखने की नीति अवैध गतिविधियों को ट्रैक करना लगभग असंभव बना देती है।

जनता के लिए निहितार्थ एवं जोखिम

इस घटना ने एक गंभीर सार्वजनिक प्रश्न खड़ा कर दिया है: क्या यूजर्स की प्राइवेसी राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है? Telegram का अति-एन्क्रिप्शन और डेटा-विरोध रुख आतंकवादियों को एक ऐसा ‘सेफ ज़ोन’ प्रदान करता है जहाँ से वे भारत जैसे देशों की सुरक्षा को चुनौती दे सकते हैं। यदि अपराधी बिना ट्रैक हुए योजनाएँ बनाते रहे, तो इसका सीधा खतरा आम नागरिक पर होगा। फेक न्यूज, बच्चों से जुड़े आपराधिक कंटेंट और वित्तीय अपराधों का प्रसार भी इस प्लेटफॉर्म की सीमित मॉडरेशन नीतियों का परिणाम है।

निष्कर्ष: नीतिगत बदलाव की अनिवार्यता

Telegram सुरक्षा और प्राइवेसी का प्रतीक हो सकता है, लेकिन जब इसका दुरुपयोग आतंकवाद और देश विरोधी गतिविधियों के लिए होने लगे, तो कंपनी को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। पब्लिक सेफ्टी को बनाए रखने के लिए अब समय आ गया है कि Telegram को अपनी एन्क्रिप्शन (Encryption) और सुरक्षा प्रणाली को और सख्त बनाना होगा, ताकि प्राइवेसी के सिद्धांतों की रक्षा करते हुए भी राष्ट्रीय सुरक्षा की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके। इस मुद्दे पर सरकारों और प्रौद्योगिकी कंपनियों के बीच एक स्पष्ट और पारदर्शी संवाद स्थापित करना आवश्यक है।

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