द लोकतंत्र/ आयुष कृष्ण त्रिपाठी : 2026 में BRICS की अध्यक्षता संभालने से पहले ही भारत ने इस बहुपक्षीय मंच को एक नए स्वरूप में ढालने की महत्वाकांक्षी पहल की है। ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य ने स्पष्ट कर दिया कि भारत केवल एक सदस्य देश के तौर पर नहीं, बल्कि एक सक्रिय दिशानिर्देशक के रूप में इस समूह की संरचना और दृष्टि दोनों को नया आयाम देने के लिए तैयार है।
सहयोग और स्थिरता के लिए लचीलापन और नवाचार का निर्माण
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में घोषणा की कि भारत की अध्यक्षता में BRICS का अर्थ होगा“Building Resilience and Innovation for Cooperation and Sustainability”, अर्थात् सहयोग और स्थिरता के लिए लचीलापन और नवाचार का निर्माण। यह घोषणात्मक वाक्य न केवल एक नई परिभाषा है, बल्कि BRICS को वैश्विक दक्षिण के लिए एक निर्णायक मंच में रूपांतरित करने का स्पष्ट संकेत भी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर भारत की हालिया G-20 अध्यक्षता का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत ने जिस प्रकार वैश्विक दक्षिण के मुद्दों को केंद्र में लाकर विकासशील देशों की आवाज़ को मजबूती दी, उसी प्रकार BRICS की अध्यक्षता के दौरान भी “जन-केंद्रित विकास” और “मानवता-प्रथम” के सिद्धांतों को प्राथमिकता मिलेगी।
यह भारत की उस व्यापक कूटनीतिक सोच का हिस्सा है, जो केवल सरकार-से-सरकार वार्ता तक सीमित न रहकर, वैश्विक नागरिकों के जीवन पर वास्तविक सकारात्मक प्रभाव डालने की दिशा में केंद्रित है। भारत यह मानता है कि आज की वैश्विक समस्याएं चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियाँ हों या डिजिटल समावेशन इन सभी का समाधान केवल संवाद से नहीं, बल्कि नवाचार और साझा संकल्प से ही संभव है। BRICS को इसी रणनीतिक उद्देश्य की दिशा में रूपांतरित करना अब भारत की प्राथमिकताओं में शामिल हो चुका है।
वैश्विक नीति-निर्माण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए भारत तैयार
इस शिखर सम्मेलन की एक खास बात यह रही कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसमें भाग नहीं लिया। इस अप्रत्याशित अनुपस्थिति ने एक ओर वैश्विक विश्लेषकों को आश्चर्यचकित किया, वहीं भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर भी प्रस्तुत किया जहां वह अपने नेतृत्व की स्पष्ट छवि और वैचारिक दिशा को मंच के समक्ष निर्बाध रूप से प्रस्तुत कर सका। पीएम मोदी का यह आत्मविश्वास न केवल भारत की रणनीतिक परिपक्वता को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि भारत अब वैश्विक नीति-निर्माण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए मानसिक, वैचारिक और संस्थागत रूप से पूरी तरह तैयार है।
दरअसल, BRICS, जो ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है, अब अपने प्रारंभिक उद्देश्यों से कहीं आगे बढ़ चुका है। इसकी भूमिका अब केवल राजनीतिक विमर्श तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह एक व्यवहारिक, समाधान-प्रदाय, बहु-आयामी मंच के रूप में विकसित हो रहा है। नए सदस्य देशों की संभावित भागीदारी, दक्षिण-दक्षिण सहयोग को संस्थागत रूप देने की कोशिशें, और वित्तीय, तकनीकी एवं सामाजिक नवाचारों को प्राथमिकता देना इस मंच की बदलती पहचान का प्रमाण हैं। भारत इस बदलाव की अगुवाई करना चाहता है, और BRICS को ऐसा मंच बनाना चाहता है जो वैश्विक असमानताओं को पाटने में सहयोगी सिद्ध हो।
परिणाम-केंद्रित नेतृत्व का दायित्व
मोदी द्वारा प्रस्तावित रणनीति BRICS को एक समावेशी, समकालीन और कार्य-उन्मुख मंच में रूपांतरित करने की दिशा में एक ठोस पहल है। भारत चाहता है कि यह मंच अब जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सुरक्षा, ऊर्जा एवं खाद्य आपूर्ति श्रृंखला और डिजिटल बुनियादी ढांचे जैसे मुद्दों पर ठोस समाधान दे। भारत की विकास प्राथमिकताएँ जैसे डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ पेयजल, और कोविड के बाद की स्वास्थ्य व्यवस्था अब BRICS की प्राथमिकताओं के साथ गहराई से मेल खा रही हैं। यही मेल BRICS को भारत की अगुवाई में वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं का प्रतिनिधि मंच बना सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत की BRICS अध्यक्षता एक औपचारिक पद नहीं, बल्कि एक परिणाम-केंद्रित नेतृत्व का दायित्व होगी। आने वाले महीनों में भारत, BRICS के अन्य सदस्य देशों के साथ संवाद और सलाह-मशविरा कर इस नए ढांचे को ठोस रूप देगा। इस प्रक्रिया की नींव संवाद, समावेश और साझा उद्देश्य पर आधारित होगी, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि BRICS 2026 के बाद केवल एक सम्मेलनों का मंच न रहे, बल्कि उभरती वैश्विक चुनौतियों का वास्तविक समाधान प्रस्तुत करने वाला सक्रिय गठबंधन बने।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत ने G-20 के दौरान जो उपलब्धियाँ हासिल कीं जैसे अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्यता देना, वैश्विक डिजिटल पब्लिक गुड्स पर सहमति बनाना, और विकासशील देशों के लिए समर्पित एजेंडा प्रस्तुत करना वे सब इस बात का प्रमाण हैं कि भारत अब केवल मंच पर मौजूद नहीं, बल्कि मंच को आकार देने की स्थिति में है। इसी आत्मविश्वास, अनुभव और वैचारिक स्पष्टता के साथ जब भारत BRICS की बागडोर संभालेगा, तो निःसंदेह यह मंच वैश्विक शासन व्यवस्था में एक नई परिभाषा गढ़ेगा।
प्रधानमंत्री मोदी की यह दूरदर्शिता जहां BRICS को “Building Resilience and Innovation for Cooperation and Sustainability” के रूप में देखा जा रहा है सिर्फ नारा नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक नेतृत्व की रणनीति का सार है। यह उस विश्व दृष्टिकोण का प्रतिबिंब है जिसमें भारत न केवल अपने हितों की रक्षा करता है, बल्कि वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं को स्वर देने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। जब 2026 में भारत BRICS की अध्यक्षता संभालेगा, तो वह न केवल एक जिम्मेदारी निभाएगा, बल्कि इस समूह को नई सोच, नया एजेंडा और नई ऊर्जा देने वाला एक निर्णायक नेतृत्व भी प्रदान करेगा।