द लोकतंत्र : महावर यानी आलता—एक ऐसा पारंपरिक श्रृंगार जो महिलाओं के पैरों में सजता है और जिसके पीछे छिपे होते हैं धार्मिक प्रतीक, सांस्कृतिक आस्था और सामाजिक विश्वास। अक्सर ये प्रश्न उठता है कि क्या यह श्रृंगार सिर्फ विवाहित महिलाओं तक सीमित है या कुंवारी कन्याएं भी इसे अपना सकती हैं?
महावर का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में महिलाओं के सोलह श्रृंगार की परंपरा में महावर (Alta) एक प्रमुख श्रृंगार है। यह न सिर्फ सौंदर्य का प्रतीक है बल्कि इसे मां लक्ष्मी का स्वरूप भी माना जाता है।
आलते का लाल रंग शक्ति, समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक है।
धार्मिक आयोजनों, विवाहों और त्यौहारों पर इसे लगाना शुभ माना जाता है।
मान्यता है कि यह नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा कवच का कार्य करता है।
क्या अविवाहित लड़कियां भी महावर लगा सकती हैं?
हां, अविवाहित लड़कियां भी महावर लगा सकती हैं, क्योंकि धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं के अनुसार, महावर केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं है। गौरतलब है कि नवरात्रि में जब कन्या पूजन होता है, तो कन्याओं के पैरों में महावर लगाया जाता है।
बेटी के जन्म के बाद जब वह पहली बार घर आती है, तो उसे महावर लगाकर लक्ष्मी स्वरूप में पूजा जाता है। यह प्रतीक है कि शुभता और देवीत्व उम्र या वैवाहिक स्थिति से बंधे नहीं होते।
महावर लगाते समय किन बातों का रखें ध्यान?
महावर लगाना जितना शुभ होता है, उतना ही जरूरी है इसे सही दिशा, समय और परिस्थिति में लगाना:
दक्षिण दिशा में बैठकर महावर नहीं लगाना चाहिए।
मंगलवार को महावर लगाना वर्जित है।
अगर घर में शोक है, तो सूतक के दौरान महावर लगाना अशुभ माना गया है।
पवित्रता और शुद्धता का ध्यान रखना आवश्यक है।
आज के दौर में जहां संस्कार और आस्था की बातें कम होती जा रही हैं, वहीं यह समझना जरूरी है कि महावर सिर्फ एक श्रृंगार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान और आध्यात्मिक सुरक्षा का प्रतीक है। कुंवारी लड़कियां भी इसे लगा सकती हैं, बस सही विधि और भावना के साथ।