द लोकतंत्र/ सुदीप्त मणि त्रिपाठी : डिजिटल युग में जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) प्रगति का प्रतीक बन रहा है, वहीं इसका दुरुपयोग समाज के लिए खतरनाक और भयावह शक्ल लेता जा रहा है। असम के डिब्रूगढ़ से सामने आया मामला इसका सबसे ताजा उदाहरण है, जहां एक मैकेनिकल इंजीनियर प्रीतम बोरा ने अपनी पूर्व प्रेमिका से बदला लेने के लिए AI की मदद से बदनाम करने के लिए ना सिर्फ़ उसकी फर्जी अश्लील छवि गढ़ी, बल्कि उस पर पोर्न इंडस्ट्री की छवि थोपकर आर्थिक लाभ भी कमाया।
बेबीडॉल आर्ची ओरिजनल नहीं AI जेनरेटेड मॉडल
दरअसल, प्रीतम बोरा ने अपनी एक्स गर्लफ़्रेंड की सिर्फ एक पुरानी तस्वीर के आधार पर ‘बेबीडॉल आर्ची’ नाम से एक डिजिटल पर्सनैलिटी बनाई, जो देखते ही देखते सोशल मीडिया पर लाखों लोगों के बीच वायरल हो गई। इस फर्जी प्रोफ़ाइल में उसने अमेरिका की एडल्ट स्टार केंड्रा लस्ट के साथ एआई-जनरेटेड तस्वीरें साझा कीं, जिसे देखकर लोग यह मान बैठे कि असम की यह लड़की इंटरनेशनल पोर्न इंडस्ट्री में प्रवेश कर चुकी है।
बता दें, इस खाते में इतने रियलिस्टिक वीडियो और तस्वीरें डाले गए कि हजारों यूज़र्स महीनों तक धोखे में रहे। उसने सिर्फ इंस्टाग्राम ही नहीं, एक लिंक-ट्री पेज और सब्सक्रिप्शन आधारित पोर्न साइट्स पर इस फर्जी AI मॉडल के वीडियो पोस्ट किए गए। आरोपी प्रीतम ने डिजिटल फैंटेसी के इस जाल ने एक लड़की की पहचान और गरिमा को रौंद डाला। बोरा ने मिडजर्नी, डिज़ायर एआई और ओपनआर्ट जैसे टूल्स की मदद से इस लड़की के चेहरे को अश्लील कंटेंट में ट्रांसपोज किया। उसने नकली सोशल मीडिया अकाउंट्स, फर्जी ईमेल और फैन पेज बनाकर ऑनलाइन मौजूदगी को विश्वसनीय बनाया।
पीड़िता ने उसने डिब्रूगढ़ साइबर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई
असली मोड़ तब आया जब पीड़िता को इस षड्यंत्र की जानकारी मिली और उसने डिब्रूगढ़ साइबर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। जांच में सामने आया कि सभी तस्वीरें और वीडियो एआई जनरेटेड थे। एसएसपी सिज़ल अग्रवाल ने प्रेस को बताया कि पुलिस ने आरोपी को तिनसुकिया से गिरफ्तार कर लिया है और पूछताछ के दौरान उसने अपराध स्वीकार कर लिया है। बोरा की वित्तीय गतिविधियों की जांच के लिए उसके डिजिटल दस्तावेज़ भी जब्त किए गए हैं। शुरुआती अनुमान है कि वह इस अपराध से ₹10 लाख से अधिक की अवैध कमाई कर चुका था।
यह घटना इस बात का सबूत है कि कैसे AI का दुरुपयोग आज किसी व्यक्ति की पहचान मिटाकर उसे एक ‘डिजिटल मिथक’ बना सकता है। Revenge Porn की यह नई तकनीकी परिभाषा अब सिर्फ निजी बदले की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक संगठित डिजिटल अपराध है जो कानून, समाज और तकनीक के बीच के अंतर को मिटा रहा है। इस केस ने यह भी साबित किया कि सोशल मीडिया पर जो दिख रहा है, वह ज़रूरी नहीं कि सच हो। AI आधारित Deepfake तकनीक इतनी प्रामाणिक लगती है कि आम यूज़र्स के लिए सच्चाई और फरेब के बीच अंतर कर पाना कठिन हो गया है।
सोशल मीडिया रेगुलेशन और डिजिटल एथिक्स पर गहन मंथन की आवश्यकता
प्रश्न अब केवल इस एक केस का नहीं है, बल्कि यह साइबर कानून, सोशल मीडिया रेगुलेशन और डिजिटल एथिक्स पर गहन मंथन की मांग करता है। क्या सोशल मीडिया कंपनियां इस तरह के फर्जी कंटेंट को वायरल होने से रोकने के लिए जवाबदेह होंगी? क्या AI डिवेलपर प्लेटफॉर्म्स के लिए कानूनी नियंत्रण अनिवार्य नहीं होना चाहिए?
प्रीतम बोरा की साजिश आज एक चेतावनी है कि तकनीक की ताक़त जब गलत हाथों में जाती है, तो वह एक तस्वीर से किसी को भी नर्क में धकेल सकती है। यह मामला AI, पोर्नोग्राफी, साइबर अपराध और डिजिटल पहचान की जटिलताओं पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बन जाना चाहिए।