द लोकतंत्र: सावन का महीना भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। इसी माह में रुद्राक्ष धारण करने का विशेष महत्व होता है, क्योंकि रुद्राक्ष को शिव का स्वरूप माना गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, ब्रह्मांड के कल्याण के लिए भगवान शंकर ने वर्षों तक घोर तपस्या की। जब उन्होंने आंखें खोलीं, तब उनके नेत्रों से अश्रु बहे और वहीं से रुद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई। इसीलिए इसे शिव के नेत्रों का प्रतीक माना जाता है।
सावन के सोमवार, प्रदोष व्रत और शिवरात्रि जैसे पुण्य अवसरों पर रुद्राक्ष धारण करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इसे धारण करने का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल है, जब वातावरण शांत और ऊर्जा से भरपूर होता है। रुद्राक्ष पहनने से पहले उसे पूजा स्थान या शिवलिंग के पास लाल कपड़े पर रखें। फिर पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हुए गंगाजल से शुद्ध करें और पंचामृत में कुछ देर के लिए डुबो दें। इसके बाद इसे लाल धागे में पहनें।
ध्यान दें कि रुद्राक्ष धारण करते समय सात्विक जीवनशैली का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। मांस-मदिरा, असत्य भाषण और अशुद्ध विचारों से दूर रहना चाहिए। तभी रुद्राक्ष अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ कार्य करता है। मान्यता है कि रुद्राक्ष पहनने के 7 से 21 दिन के भीतर सकारात्मक प्रभाव दिखने लगते हैं। लेकिन यदि व्यक्ति धार्मिक नियमों का पालन नहीं करता, तो इसका प्रभाव निष्फल हो सकता है।
रुद्राक्ष पहनने से बचने वाले समय:
श्मशान स्थल पर जाना हो
नवजात शिशु के जन्म के समय
यौन संबंध के दौरान
इन परिस्थितियों में रुद्राक्ष को उतार देना चाहिए क्योंकि ये अशुद्धि का कारण बनता है। रुद्राक्ष केवल एक धार्मिक गहना नहीं, बल्कि एक ऊर्जावान साधन है जो व्यक्ति को आत्मिक शांति, मानसिक स्थिरता और शिव कृपा प्रदान करता है। सावन में इसे नियमपूर्वक पहनने से विशेष फल प्राप्त होता है।