द लोकतंत्र/ नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद देश की सियासत में हलचल तेज हो गई है। 21 जुलाई की रात को उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंपा। अपने पत्र में उन्होंने कहा कि चिकित्सकीय सलाह के तहत उन्हें अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी है, इसलिए वह संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अंतर्गत तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं।
इस्तीफे के साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी आभार जताया और कहा कि उपराष्ट्रपति के रूप में उन्हें जो अनुभव और सहयोग मिला, वह अमूल्य है। हालांकि धनखड़ का इस्तीफा ऐसे समय आया जब संसद का मॉनसून सत्र शुरू हुआ ही था, और इसी वजह से यह कदम सिर्फ स्वास्थ्य कारणों तक सीमित नहीं दिख रहा। विपक्ष ने इस पर सवाल उठाते हुए इसे एक “पूर्वनियोजित” राजनीतिक पटकथा करार दिया है।
कांग्रेस ने BJP पर साधा निशाना
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश और सांसद सुखदेव भगत ने सीधे तौर पर केंद्र सरकार और भाजपा नेतृत्व पर हमला किया। उन्होंने आरोप लगाया कि धनखड़ के इस्तीफे की पटकथा पहले से तैयार थी और संसद की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की बैठक में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू की गैरहाज़िरी को उपराष्ट्रपति के अपमान का प्रतीक बताया।
खासतौर पर कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने कहा कि जेपी नड्डा द्वारा राज्यसभा में की गई टिप्पणी, जिसमें उन्होंने कहा था कि, जो मैं कह रहा हूं, वही ऑन रिकॉर्ड होगा’ सीधे तौर पर चेयर यानी उपराष्ट्रपति की अवहेलना थी।
बीजेपी अध्यक्ष नड्डा ने दी सफ़ाई
इस पूरे विवाद पर सफाई देते हुए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि वह और रिजिजू उपराष्ट्रपति द्वारा बुलाई गई बैठक में इसलिए शामिल नहीं हो सके क्योंकि वे दोनों जरूरी संसदीय कार्यों में व्यस्त थे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस बारे में पहले ही उपराष्ट्रपति के कार्यालय को सूचना दे दी गई थी।
नड्डा ने यह भी कहा कि उनकी राज्यसभा में की गई टिप्पणी विपक्ष की टोका-टोकी करने वाले सांसदों के लिए थी, न कि चेयर के लिए। हालांकि सूत्रों की मानें तो धनखड़ इस व्यवहार से आहत थे और उन्होंने बैठक के दोबारा शेड्यूलिंग की मांग को अस्वीकार कर दिया था।
नये बीजेपी अध्यक्ष की तलाश तेज, नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया भी जल्द शुरू करनी होगी
अब बीजेपी के सामने दो बड़ी जिम्मेदारियां हैं। पहला, नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करना और दूसरा, पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त करना। जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2023 में समाप्त हो चुका था लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 की वजह से उसे आगे बढ़ाया गया था। अब जबकि चुनाव संपन्न हो चुके हैं, पार्टी नए अध्यक्ष की तलाश में जुट गई है। वहीं उपराष्ट्रपति पद के लिए पार्टी को एक ऐसे नेता की आवश्यकता है जो न सिर्फ संवैधानिक जिम्मेदारियों को बखूबी निभा सके बल्कि 2029 के आम चुनावों के लिए पार्टी की रणनीति में भी अहम भूमिका निभा सके।
संविधान के अनुच्छेद 68(2) के अनुसार, उपराष्ट्रपति के इस्तीफे या पद रिक्त होने की स्थिति में चुनाव जल्द से जल्द कराना अनिवार्य होता है। उपराष्ट्रपति बनने के लिए भारत का नागरिक होना, न्यूनतम 35 वर्ष की आयु, राज्यसभा सदस्य के रूप में योग्य होना और किसी लाभ के पद पर न होना जरूरी शर्तें हैं। भाजपा इस पद पर ऐसे व्यक्ति को बैठाना चाहेगी जो एक ओर संविधानिक गरिमा को बनाए रखे और दूसरी ओर राजनीतिक दृष्टि से पार्टी को मजबूत कर सके।
जाहिर है, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा केवल एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई राजनीतिक समीकरण और रणनीतियां छिपी हुई हैं। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है, तो भाजपा अपने अगले दो अहम निर्णयों को लेकर गहन विचार-मंथन में जुट गई है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी इन दो महत्वपूर्ण पदों क्रमशः उपराष्ट्रपति और राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए किन चेहरों को सामने लाती है और इसके राजनीतिक मायने क्या निकलते हैं।