द लोकतंत्र: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में रहने वाले स्थानीय हिंदुओं को हथियार लाइसेंस देने की नीति का बचाव किया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए लिया गया है। सीएम ने विशेष रूप से दक्षिण सलमारा, मनकाचर और भागबर जैसे जिलों का जिक्र किया, जहां स्थानीय हिंदू आबादी बेहद कम है।
सीएम सरमा के मुताबिक, कुछ गांवों में 30 हजार लोगों के बीच केवल 100 सनातन धर्म के लोग रहते हैं। ऐसे क्षेत्रों में कानूनी प्रक्रिया के तहत यदि स्थानीय परिवार हथियार लाइसेंस चाहते हैं, तो उन्हें यह सुविधा मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा, “सनातन धर्म की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।”
असम मंत्रिमंडल ने 28 मई 2024 को एक नीति को मंजूरी दी थी, जिसके तहत असुरक्षित और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले स्थानीय निवासियों को हथियार लाइसेंस देने की व्यवस्था की गई। इस योजना का उद्देश्य गैरकानूनी खतरों को रोकना और समुदायों में सुरक्षा की भावना पैदा करना है।
देश में बंदूक लाइसेंस प्रक्रिया
भारत में बंदूक का लाइसेंस पाना आसान नहीं है। यह 1959 के शस्त्र अधिनियम के तहत आता है और केवल नॉन-प्रोहिबिटेड बोर (NPB) हथियारों की अनुमति दी जाती है। लाइसेंस पाने के लिए नागरिक को गंभीर खतरे का प्रमाण देना होता है, जिसके लिए अक्सर एफआईआर दर्ज करानी पड़ती है। आवेदन के बाद पुलिस सत्यापन, आपराधिक रिकॉर्ड की जांच और इंटरव्यू जैसी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।
विपक्ष का विरोध
असम सरकार की इस नीति का तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। टीएमसी सांसद सुष्मिता देव का कहना है कि यह नीति असम पुलिस और सीमा सुरक्षा बल की कानून-व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता पर सवाल उठाती है। उन्होंने यह भी कहा कि मूल निवासियों की परिभाषा स्पष्ट नहीं है, जिससे नीति का दुरुपयोग हो सकता है।
सुष्मिता देव के मुताबिक, हथियार लाइसेंस मिलने के बाद यह नियंत्रित नहीं किया जा सकता कि उसका इस्तेमाल किस उद्देश्य के लिए होगा। उनका मानना है कि यह नीति एक खतरनाक मिसाल पेश करती है और इस संदेश को मजबूत करती है कि डबल इंजन सरकार के तहत लोग सुरक्षित नहीं हैं।
राजनीतिक असर
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा आने वाले समय में असम की राजनीति में एक बड़ा विवाद बन सकता है। जहां सरकार इसे सुरक्षा का कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे राजनीतिक और साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से देख रहा है।