द लोकतंत्र: पितृ पक्ष हिंदू धर्म में एक विशेष अवधि है, जिसे पूर्वजों की स्मृति और श्रद्धा अर्पित करने का समय माना जाता है। हर साल 15 दिनों तक चलने वाले इस श्राद्ध पक्ष में लोग तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध विधि से अपने पितरों को याद करते हैं। मान्यता है कि इस दौरान पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर उनकी समस्याओं को दूर करते हैं।
पितृ पक्ष के दौरान क्या नहीं करना चाहिए?
पितृ पक्ष के समय कई नियम और परंपराएँ सदियों से चली आ रही हैं। इस दौरान विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन और नए सामान की खरीदारी जैसे शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। इसके साथ ही दाढ़ी-मूंछ बनवाना, बाल और नाखून काटना भी निषेध होता है।
पितृ पक्ष में बाल और नाखून काटना क्यों वर्जित है?
धार्मिक कारण
- पूर्वजों का सम्मान: मान्यता है कि इस समय बाहरी दिखावे और सजावट से दूर रहकर शुद्ध और सात्विक जीवन जीना चाहिए। बाल और नाखून काटना अशुभ और पितरों का अनादर माना जाता है।
- शोक की अवधि: यह समय पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने का है। इस दौरान बाल और नाखून न काटना शोक और सम्मान का प्रतीक है।
वैज्ञानिक कारण
- पितृ पक्ष बरसात और मौसम बदलने के बीच आता है। इस समय शरीर कमजोर रहता है और रोगों की संभावना अधिक होती है।
- इस दौरान नाखून और बाल काटने से इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए लोग इसे टालते हैं।
पितृ पक्ष की सात्विकता
हिंदू धर्म में यह समय आत्मशुद्धि और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर है। इसलिए बाहरी सजावट या शरीर पर ध्यान देने के बजाय भक्ति, तर्पण और पिंडदान पर जोर दिया जाता है।
कब काट सकते हैं बाल और नाखून?
अगर आप पितृ पक्ष के दौरान बाल या नाखून नहीं काटना चाहते हैं, तो इसे शुरू होने से एक दिन पहले पूर्णिमा तिथि पर कर सकते हैं। वहीं, पितृ पक्ष समाप्त होने के बाद फिर से यह कार्य करना उचित माना जाता है।
पितृ पक्ष केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह अपने पूर्वजों को सम्मान देने और जीवन में सात्विकता अपनाने का एक अवसर है। बाल और नाखून न काटने की परंपरा इसी श्रद्धा और शुद्धता का प्रतीक है।