द लोकतंत्र/ नई दिल्ली : भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई पर कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने विवादित टिप्पणी की है। यह बयान CJI द्वारा खजुराहो मंदिर से जुड़े एक मामले में दिए गए फैसले पर आया है। अनिरुद्धाचार्य ने अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड एक वीडियो में कहा कि जज साहब ने भगवान विष्णु की मूर्ति प्रतिष्ठा की मांग को खारिज कर दिया, जो हिंदू सनातन संस्कृति का अपमान है।
क्या है पूरा विवाद?
दरअसल, खजुराहो स्थित एक मंदिर को लेकर याचिकाकर्ता अदालत पहुँचे थे। याचिकाकर्ता ने कहा था कि मंदिर मुगलों द्वारा तोड़ा गया था और अब उसके अवशेष मौजूद हैं। उन्होंने माँग की थी कि मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति प्रतिष्ठित की जाए। याचिका पर सुनवाई करते हुए CJI बीआर गवई ने टिप्पणी की थी कि ‘हम क्यों निर्णय दें?’ हालांकि, बाद में उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है और उन्होंने याचिकाकर्ता से ‘हमें क्षमा करें’ भी कहा था।
अनिरुद्धाचार्य ने क्या कहा?
अपने प्रवचन में कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने बिना नाम लिए CJI की आलोचना करते हुए कहा, जज साहब से पूछना कि अगर सब काम भगवान ही करेंगे तो आप कुर्सी क्यों तोड़ रहे हैं? आपको जज इसलिए बनाया गया है ताकि न्याय कर सकें। न्याय करना चाहिए, ना कि हिंदू संस्कृति का अपमान। उन्होंने आगे कहा कि अगर मंदिर की मूर्ति को पुनः स्थापित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी तो यह सनातन धर्म के विरुद्ध है।
अनिरुद्धाचार्य ने CJI पर निशाना साधते हुए कहा कि भगवान ने तो रावण और हिरण्यकश्यप जैसे राक्षसों का अंत किया। अगर आज भी अधर्म फैल रहा है तो भगवान प्रकट होकर उसे खत्म कर सकते हैं। उन्होंने कहा, अगर सब भगवान करेंगे तो अपनी कुर्सी छोड़ दो। भारत में रहकर क्या कोई जज मुसलमानों या मस्जिद के खिलाफ ऐसी टिप्पणी कर सकता था? लेकिन हिंदू देवताओं के खिलाफ बोलना आसान समझ लिया जाता है।
‘हिंदू’ सहनशील, इसलिए अपमान सहते हैं
कथावाचक ने हिंदुओं की सहनशीलता पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि केवल इसलिए हिंदू मंदिर तोड़े गए और देवताओं का अपमान होता रहा क्योंकि हिंदू समाज विरोध नहीं करता। उन्होंने आरोप लगाया कि बड़े पदों पर बैठे लोग भी हिंदू संस्कृति का सम्मान करने से पीछे हट जाते हैं।
अनिरुद्धाचार्य का यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। कुछ लोग इसे हिंदू आस्था की रक्षा के पक्ष में बता रहे हैं, जबकि कई लोग इसे न्यायपालिका की गरिमा पर हमला मान रहे हैं।