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…तो सिर्फ यादों में रह जाएगी प्रीमियर पद्मिनी, अब काली-पीली टैक्सियों के बिना दौड़ेगी मायानगरी मुम्बई

The Premier Padmini Mumbai

द लोकतंत्र : परिवर्तन सृष्टि का नियम है। बदलाव समय की मांग है। तेजी से बदल रही दुनिया में हर रोज हमारी ज़िन्दगी में कुछ नया जुड़ रहा है तो कुछ पुराना बिछड़ रहा है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब मैं मायानगरी मुम्बई में था। अपने यूपी के बस्ती में रहने वाले और मुम्बई में प्रीमियर पद्मिनी / काली पीली टैक्सी चलाकर गुजारा करने वाले संतोष ने सिद्धि विनायक मंदिर के पास हमसे पूछा था – कहीं छोड़ दीं? मायानगरी में अपनी भाषा का आकर्षण इतना गज़ब था कि हम ना नहीं कर सके और उबर कैब कैंसिल कर संतोष के संग हो लिए। यही मेरी पहली और अब शायद आखिरी यात्रा ‘प्रीमियर पद्मिनी’ यानी काली पीली टैक्सी के साथ रही। वह पद्मिनी जो अब सिर्फ लोगों के यादों में, उनके जेहन में ज़िंदा रहेगी।

हमारी ऑंखें ढूढेंगी प्रीमियर पद्मिनी और संतोष को

छोटू पांडेय, रजत त्रिपाठी, विकास सिंह और मैं अब शायद ही कभी इसके बारे में बात करें। एक बेहद छोटे से सफर की साथी रही प्रीमियर पद्मिनी से अपनी भाषा और बस्ती वाले संतोष की वजह से जो अपनेपन का रिश्ता जुड़ गया था उसपर समय के साथ धूल की परतें बैठ जाएँगी। फिर कभी अगर मुम्बई जाना हुआ तो बेशक हमारी ऑंखें ढूढेंगी उस काली पीली टैक्सी और संतोष को।

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तेजी से बदल रही दुनिया और टेक्नोलॉजी ने हमारे रहन सहन में ढेरों बदलाव किये हैं। ऑनलाइन ऐप वाली कैब सर्विस जिसका हम रोजाना उपयोग करते हैं उसने काली-पीली टैक्सी को गहरे अंधेरे में धकेल दिया है। दशकों तक, मुम्बई शहर की सडकों पर राज करने वाली प्रीमियर पद्मिनी अब इतिहास के पन्नों में कही खो जाने वाली है।

मुंबई में आधिकारिक तौर पर प्रीमियर पद्मिनी टैक्सी नहीं चलेगी

प्रीमियर पद्मिनी को बंद करने का फैसला Brihanmumbai Electric Supply and Transport (BEST) के डीजल-संचालित डबल-डेकर बसों को बंद करने के बाद लिया गया। परिवहन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक आखिरी प्रीमियर पद्मिनी को 29 अक्टूबर, 2003 को तारदेव आरटीओ में एक काली-पीली टैक्सी के रूप में पंजीकृत किया गया था। चूंकि, शहर में कैब संचालन की अधिकतम समय-सीमा 20 साल है, ऐसे में अब सोमवार से मुंबई में आधिकारिक तौर पर प्रीमियर पद्मिनी टैक्सी नहीं चलेगी।

कुछ साल पहले, शहर के सबसे बड़े टैक्सी चालक संघ में से एक ‘मुंबई टैक्सीमेन यूनियन’ ने सरकार से कम से कम एक काली-पीली टैक्सी को संरक्षित करने के लिए याचिका दायर की थी, हालांकि उन्हें इसमें कोई सफलता नहीं मिली। अब यह टैक्सी इतिहास के पन्नों में कहीं खो जाएगी साथ ही मुम्बई की सड़कों पर भी लोग इसे काफी मिस करेंगे।

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Sudeept Mani Tripathi

Sudeept Mani Tripathi

About Author

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से हिंदी पत्रकारिता में परास्नातक। द लोकतंत्र मीडिया फाउंडेशन के फाउंडर । राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर लिखता हूं। घूमने का शौक है।

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