द लोकतंत्र : हिंदू धर्म में शनि प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। शनि देव को न्याय और दंड का अधिपति माना जाता है और वे स्वयं भगवान शिव के शिष्य माने जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, शिवजी ने शनि को न्याय और दंड विधान का अधिकार प्रदान किया था। इसलिए कहा जाता है कि यदि भगवान शिव की विधिवत पूजा की जाए, तो शनि देव द्वारा दिए जाने वाले कष्ट स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं।
इस साल आश्विन मास का आखिरी प्रदोष व्रत 4 अक्टूबर 2025 को है। यह दिन भगवान शिव और शनि देव की उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन पूजा करने से संतान संबंधी समस्याएं, शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या, धन-धान्य संबंधी परेशानियां और जीवन में अन्य कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
शनि प्रदोष व्रत संतानों की प्राप्ति और उनके कल्याण के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
जो लोग शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रभाव में हैं, उनके लिए यह व्रत शनि के प्रकोप से रक्षा करने वाला माना जाता है।
धन और व्यवसाय में रुकावटों से मुक्ति पाने के लिए भी इस दिन पूजा करना लाभकारी होता है।
शनि प्रदोष व्रत की सरल पूजा विधि
सुबह स्नानादि के बाद पूजा प्रारंभ करें।
शिवलिंग पर जल और बेलपत्र अर्पित करें।
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।
पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करें।
शनि देव के मूल मंत्र “ॐ शं शनैश्चराय नमः” का 108 बार जाप करें।
अंत में किसी गरीब व्यक्ति को भोजन या उपयोगी वस्तु दान करें।
शनि प्रदोष में न करें ये गलतियां
घर और पूजा स्थल की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
मन को शुद्ध रखें, नकारात्मक विचार और द्वेष न रखें।
परिवार के सभी सदस्यों के प्रति आदरपूर्ण व्यवहार करें।
पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं को हानि न पहुंचाएं।
नाखून या बाल काटने से बचें और सात्विक आहार का पालन करें।
शनि प्रदोष व्रत का पालन करने से जीवन में सकारात्मकता, मानसिक शांति और समृद्धि बनी रहती है।