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तमाम गतिरोधों के बाद यूपी के लिए क्या होगा कांग्रेस का प्लान, 17 सीटों से कैसे भेद पाएगी बीजेपी का चक्रव्यूह

After all the deadlocks, what will be Congress's plan for UP, how will it be able to break through BJP's maze of 17 seats?

द लोकतंत्र : लोकसभा चुनाव को देखते हुए उत्तर प्रदेश में सपा – कांग्रेस के बीच गठबंधन तो हो चुका है। 17 सीटों पर कांग्रेस लड़ भी रही है। लेकिन, बीजेपी के चक्रव्यूह और यूपी की सियासी चुनौतियों से कैसे निपटेगी यह सवाल यक्ष प्रश्न की तरह कांग्रेस के सामने अभी भी खड़े हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में 2.33 फीसदी वोट और आम चुनाव 2019 में महज़ 6.36 प्रतिशत वोट कांग्रेस को पड़े थे। यूपी का कांग्रेस मौजूदा संगठन पार्टी के बुरे वक़्त और सियासी थपेड़ों से पहले ही बिखर चुका है। वोट शेयर है नहीं, परम्परागत वोटर्स ने भी अलग राह पकड़ ली है ऐसे में 17 सीटों पर जीत की दावेदारी पूरी तरह समाजवादी पार्टी पर निर्भर है।

रायबरेली बचा ले जाये यह भी किसी चमत्कार से कम नहीं होगा

भाजपा की राजनीति के सामने कोई यह पक्के तौर पर दावा नहीं कर सकता कि उसका कोर वोटर बेस बचा हुआ है। कब किसकी अंतरात्मा जाग जाए और वह कमल के फूल के सामने का बटन दबा दे कह नहीं सकते। हाँ कुछ थियरिज हैं जो ज़रूर इस बात की तस्दीक़ कर सकती हैं कि कहीं कोई संभावना बची है जिसको साधकर विपक्ष भाजपा के जमे जमाये सिस्टम को हिला दे।

सोनिया गांधी के रायबरेली लोकसभा सीट छोड़ने के साथ भाजपा की नजरें अब इस सीट पर जम गई हैं। भारतीय जनता पार्टी अब रायबरेली को लेकर एग्रेसिव अप्रोच के साथ आगे बढ़ रही है। इस बार लोकसभा चुनाव भाजपा ‘फ़्रेंडली मैच’ की तरह नहीं खेलने वाली है। स्मृति इरानी ने इस बार दावा भी किया है कि रायबरेली सीट भी कांग्रेस के हाथों से छीन ली जाएगी। हालाँकि, ऊपरी तौर पर कांग्रेस को भले ही कहे कि स्मृति के दावे खोखले हैं लेकिन अंदरूनी तौर पर कांग्रेस इस सच्चाई से वाक़िफ है। अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट पर उसकी क्या रणनीति होगी यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है।

अमेठी को लेकर पूर्व के अनुभव को देखते हुए कांग्रेस राहुल गांधी को वहाँ से लड़ाना नहीं चाहती। वहीं, स्मृति इरानी की तैयारियाँ इस बार और भी बड़े अंतर से राहुल गांधी को हराने की है। यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय समेत केंद्रीय नेतृत्व के बड़े नेता भले यह दावा कर रहे हों कि रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट से गांधी परिवार का ही कोई शख्स चुनाव लड़ेगा लेकिन अभी तक उनके दावों के अनुरूप तैयारियाँ नज़र नहीं आ रही हैं।

साल दर साल घट रहा वोटों का अंतर

रायबरेली सीट पर सोनिया गांधी जीतती आई हैं। यह सीट भी कांग्रेस पार्टी की परंपरागत सीटों में से एक है। हालाँकि 2014 के बाद 2019 में सोनिया गांधी की जीत का मार्जिन तेज़ी से घटा है। साल 2014 में जहां सोनिया ने 3 लाख 52 हजार वोट से चुनाव जीता था वहीं, 2019 में मार्जिन घटकर 1 लाख 67 हजार वोटों के अंतर तक आ गया। आँकड़ो पर गौर करेंगे तो यह कांग्रेस के लिए शुभ संकेत बिलकुल भी नहीं है और शायद इसलिए भी सोनिया गांधी ने इसबार राज्यसभा की राह चुनी।

अभी तक प्रत्याशी फाइनल नहीं

कांग्रेस के लिए यह लोकसभा चुनाव यूपी में अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई है। हालाँकि इस दिशा में कांग्रेस की तरफ़ से अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। प्रत्याशियों के नाम तक अभी फाइनल नहीं हुए हैं। हालाँकि, कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक़ कौन कहाँ से लड़ेगा इसको लेकर पार्टी स्तर पर मंथन कर लिया गया है और जल्द ही इसका औपचारिक ऐलान कर दिया जाएगा।

वहीं, कुछ सियासी विशेषज्ञों का मानना है कि जबतक ग्राउंड लेवल पर कांग्रेस का संगठन मज़बूत नहीं होगा सारी क़वायद धरी की धरी रह जाएगी। कांग्रेस को अभी बूथ संभलने के लिए एजेंट नहीं मिल रहे। बूथ कार्यकर्ताओं की तुलना कुत्तों से करने के बाद संगठन के दायित्व को कोई भी लेना नहीं चाहता और स्थानीय नेता गेंद एक दूसरे के पाले में डालने की कोशिश कर रहे हैं। ज़िला कमेटियों से भी लगातार इस्तीफ़े भेजे जा रहे हैं।

सपा की पीठ पर बैठकर रास्ता पार करेगी कांग्रेस

गठबंधन में होने की वजह से कांग्रेस के पास मात्र एक समाजवादी पार्टी का सहारा ही बचा है। कांग्रेस की एकमात्र रणनीतिक जीत यही रही है कि यूपी में उसने अखिलेश के साथ अपना गठबंधन पक्का कर लिया। सपा कार्यकर्ताओं की बदौलत ही आप उनकी नैया मझदार से निकल पाएगी। हालाँकि अभी भी यूपी कांग्रेस कमेटी और सपा मुख्यालय के बीच तालमेल नहीं बन पाया है जिसकी वजह से आगे पार्टी को दिक़्क़तें उठानी पड़ सकती हैं।

Sudeept Mani Tripathi

Sudeept Mani Tripathi

About Author

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से हिंदी पत्रकारिता में परास्नातक। द लोकतंत्र मीडिया फाउंडेशन के फाउंडर । राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर लिखता हूं। घूमने का शौक है।

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