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बिहार से बह रही ‘अश्लीलता के बयार’ से ध्वस्त हो रहा है ‘भोजपुरी’ का लोक व्यवहार

Bhojpuri folk culture is being destroyed by the 'wind of obscenity' blowing from Bihar

द लोकतंत्र/ उमा पाठक : भोजपुरी भाषा, जो अपने शुद्ध, सरल और काव्यात्मक स्वरूप के लिए जानी जाती थी, मौजूदा दौर में एक गहरे संकट का सामना कर रही है। दरअसल, बिहार से बह रही ‘अश्लीलता की बयार’ ने भोजपुरी जैसी मिठास से भरी भाषा जो अपनी गोद में प्रेम, समर्पण, सामाजिक समरसता, संस्कृति और ग्रामीण जीवन की सादगी को समेटे हुए थी उसे प्रदूषित कर दिया है। भोजपुरी आज अश्लीलता और फूहड़ता का पर्याय बनती जा रही है। बिहार और उत्तर प्रदेश में लाखों लोग भोजपुरी भाषा का प्रयोग करते हैं और एक समय था जब भोजपुरी के माध्यम से सामाजिक चेतना, प्रेम, और गांव की संस्कृति की मिठास का अनुभव होता था। लेकिन, अब भोजपुरी में अश्लीलता का ऐसा जहर घुल गया है कि यह भाषा अपना लोक व्यवहार खोती जा रही है।

भोजपुरी इंडस्ट्री अब बन चुकी है ‘पॉर्न कंटेंट’ का पर्याय

भोजपुरी में अश्लीलता का जो जहर आज फैला है, वह समाज के लिए एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। भोजपुरी में ऐसे-ऐसे गंदे गाने बन रहे हैं जिनके बारे में लिखते हुए मैं शर्मिदगी और अपमान से गड़ी जा रही हूँ। भोजपुरी इंडस्ट्री अब ‘पॉर्न कंटेंट’ का पर्याय बन चुकी है। गाने और वीडियो कंटेंट में अभद्र भाषा और नग्नता का ऐसा समावेश हो गया है कि यह सीधे तौर पर समाज के नैतिक और सांस्कृतिक ताने-बाने के लिए कैंसर बन गया है। कोई भी सामाजिक या धार्मिक कार्यक्रम इन फूहड़ गानों से अछूता नहीं है। युवाओं और बच्चों पर इसका सीधा और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

भोजपुरी का स्वरूप दिन-प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा है। खासकर यूट्यूब और सोशल मीडिया के आगमन के बाद भोजपुरी के गानों और फिल्मों में अश्लीलता का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। भोजपुरी इंडस्ट्री दरअसल पोर्न इंडस्ट्री सरीखी हो गई है जहां ‘सेक्स’ ही प्राइमरी और अंतिम कंटेंट है। सस्ते शब्द, गंदे डांस मूव्स, और फूहड़ता ही आज भोजपुरी है। मौजूदा उदाहरणों को लेते हैं मसलन सोना पांडेय, तूफ़ानी लाल यादव, तान्या झा और अनगिनत ऐसे नाम हैं जिन्होंने भोजपुरी के मूल स्वरूप को बदल दिया है। वे अपने गानों और वीडियोज़ में न केवल अभद्रता और अश्लीलता को बढ़ावा दे रहे हैं, बल्कि इसे समाज में स्वीकृत भी बना रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इनके द्वारा रोज़ाना भोजपुरी भाषा का बलात्कार किया जा रहा है। और यह मात्र एक शब्द नहीं है, बल्कि एक सच्चाई है जो आज हमारे सामने है।

प्रभावी निगरानी तंत्र और सेन्सरशिप के न होने के मायने

भोजपुरी इंडस्ट्री पर किसी प्रकार की निगरानी और सेंसरशिप का न होना भोजपुरी भाषा के लिए ख़तरनाक होता जा रहा है। बॉलीवुड, टीवी और अन्य फिल्म इंडस्ट्री में जहां फिल्मों और गानों के लिए सेंसर बोर्ड जैसी संस्थाएं मौजूद हैं, भोजपुरी इंडस्ट्री में ऐसा कोई प्रभावी निगरानी तंत्र नहीं है। इसका परिणाम यह है कि किसी भी स्तर का कंटेंट, चाहे वह कितना भी अभद्र हो, अश्लील हो बिना किसी प्रतिबंध के बनाया जा रहा है और सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म्स के माध्यम से समाज में फैलाया जा रहा है। कोई निगरानी और नियंत्रण तंत्र न होने से यूट्यूब और सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती।

हालात इतने बदतर हैं कि मौजूदा यूट्यूब मीडिया और सोशल मीडिया पेजेस इन गानों को प्रमोट करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा व्यूज और सब्सक्राइबर्स बढ़ाए जा सकें। यही कारण है कि गानों में ‘वायरल’ होने के नाम पर शर्मनाक कंटेंट बेहद आसानी से परोसा जा रहा है। स्थानीय यूट्यूब चैनल और कथित डिजिटल मीडिया हाउस भी इसी राह पर चल पड़े हैं। वे ऐसे गानों के कंटेंट बाइट्स, इंटरव्यू और रील्स चलाते हैं, जिससे उनकी कमाई हो सके। लेकिन इस सबका सीधा असर समाज की मानसिकता और युवा पीढ़ी पर रहा है।

भोजपुरी इंडस्ट्री में नारीत्व की गरिमा का हनन

कई इंडिपेंडेंट शोध बताते हैं कि जो बच्चे और किशोर इस तरह के अश्लील गानों को सुनते हैं, उनकी सोच में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना कमजोर हो जाती है। उनकी सोच महिलाओं के प्रति हिंसक और अपमानजनक बन जाती है। परिणामस्वरूप, वे समाज में गलत आचरण करने की ओर प्रवृत्त होते हैं और इससे महिलाओं के प्रति अपराध में इजाफ़ा होता है। भोजपुरी इंडस्ट्री ने खुले तौर पर नारीत्व की गरिमा का न सिर्फ़ हनन कर रही है बल्कि महिलाओं के प्रति अपराध और हिंसा को बढ़ावा भी दे रही हैं। अधिकांश गानों में गायक महिलाओं के शरीर को लेकर गंदे और आपत्तिजनक संवाद बोलते हैं। यह मानसिकता धीरे-धीरे समाज में सामान्य होती जा रही है, और इसके कारण समाज में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को भी खतरा हो गया है।

भोजपुरी भाषा के प्रति समाज को नैतिक जिम्मेदारी उठानी होगी

भोजपुरी भाषा की जड़ें बहुत गहरी और पुरानी हैं। यह भाषा न केवल उत्तर प्रदेश और बिहार, बल्कि भारत के कई हिस्सों में बोली जाती है। भोजपुरी को अपनी सादगी और मिठास के लिए जाना जाता था। ऐसे में इसकी सादगी और मिठास को बचाये रखने के लिए प्रभावी कदम ख़ुद इस समाज के लोगों को उठाने होंगे। यूँ तो भारत में अश्लीलता को रोकने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन भोजपुरी इंडस्ट्री पर उनका प्रभाव नगण्य है। अश्लील सामग्री को बनाने, प्रसारित करने, और प्रसारण करने पर तीन से पाँच साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इसके बावजूद, इस तरह के कंटेंट पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती है।

इस तरह के कानून का प्रभावी रूप से क्रियान्वयन तभी संभव है जब सेंसरशिप और निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाए। साथ ही, ऐसे कंटेंट को प्रमोट करने वाले यूट्यूब चैनल्स और सोशल मीडिया अकाउंट्स पर भी सख्त कार्रवाई की जाए। हालाँकि यह भी तब संभव होगा जब भोजपुरिया समाज इसे लेकर दबाव बनाएगा, उचित फ़ोरम्स पर शिकायत करेगा। इस समस्या का समाधान कानूनी, सामाजिक, और शैक्षिक तीनों स्तरों पर होना चाहिए। तभी हम इस सामाजिक और सांस्कृतिक पतन को रोक सकेंगे और भोजपुरी को उसकी पुरानी गरिमा वापस दिला सकेंगे। जब तक हम इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएंगे, तब तक यह प्रवृत्ति बढ़ती रहेगी। भोजपुरी में व्याप्त अश्लीलता पर लगाम लगाना केवल एक कानूनी मसला नहीं है, बल्कि यह हमारी भाषा के प्रति नैतिक जिम्मेदारी भी है।

इस आर्टिकल की लेखिका उमा पाठक पेशेवर पत्रकार हैं और मौजूदा समय में एक मीडिया संस्थान में असिस्टेंट प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं। इस लेख में उन्होंने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।

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