द लोकतंत्र/ सुदीप्त मणि त्रिपाठी : सोसाइटी में पद, प्रतिष्ठा, सम्मान और पहचान की चाहत रखना हर इंसान की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। हर व्यक्ति चाहता है कि वह आम नहीं ख़ास हो और उसे उसके काम के लिए जाना पहचाना जाए, सराहा जाए और सम्मानित किया जाए। अपनी इसी चाहत को धरातल पर उतारने के लिए लोग सामाजिक कार्यों, राजनीति, एनजीओ, ट्रस्ट आदि की गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं।
सोशल मीडिया के जमाने में तो लोग छोटी सी छोटी बातों, उपलब्धियों को अपने फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स पर शेयर करते हैं। यहाँ तक कि अस्पताल में मरीज़ों के बीच एक केला, सेब, संतरा बाँटकर भी लोग उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देते हैं जिससे समाज में अपनी अलग छवि और प्रतिष्ठा बनायी जा सके। ऊपर से तुर्रा अगर फोटो किसी राजनेता और सेलिब्रिटी के साथ हो तो क्या ही कहने। ख़ैर, लोगों की इसी चाहत ने एक ऐसे बाज़ार को जन्म दे दिया है जहां अवॉर्ड्स की मंडी सजती है और पैसे देकर तमाम अवॉर्ड्स ख़रीदे जा सकते हैं।
अवॉर्ड्स के ख़रीद-फ़रोख़्त का गोरख धंधा खूब फल फूल रहा है
जी हाँ, भारत में धीरे-धीरे अवॉर्ड्स का एक बाज़ार सज कर तैयार हो गया है जिसके अंतर्गत पैसे देकर लोग अवॉर्ड्स ले रहे हैं ताकि सोसाइटी में अपनी पद, प्रतिष्ठा और पहचान को प्रदर्शित कर सकें। सीधे सरल शब्दों में लोगों के अवॉर्ड्स की चाहत एक बाजार का रूप ले चुकी है, जहां अवॉर्ड्स के ख़रीद-फ़रोख़्त का गोरख धंधा खूब फल फूल रहा है।
आपने देखा होगा कि हर दिन सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर कई स्पॉन्सर्ड पोस्ट्स आते हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के अवॉर्ड्स के लिए नॉमिनेशन माँगे जाते हैं। ये नॉमिनेशन कई बार प्रतिष्ठित पुरस्कारों के नाम पर होते हैं, जो भारत सरकार या अन्य मान्यता प्राप्त संस्थाओं द्वारा दिए जाते हैं, लेकिन असल में इनमें से अधिकतर अवॉर्ड्स का कोई वास्तविक आधार नहीं होता। इन फर्जी अवॉर्ड्स के इवेंट्स में सेलिब्रिटीज़ की मौजूदगी इसे और आकर्षक बना देती है, और आम लोग इसे वास्तविक मान लेते हैं। फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर न केवल अवॉर्ड्स के लिए नॉमिनेशन की अपील की जाती है, बल्कि इन इवेंट्स के प्रचार के लिए प्रसिद्ध हस्तियों का इस्तेमाल किया जाता है। सेलिब्रिटी ब्रांडिंग इन अवॉर्ड्स को वैधता प्रदान करती है, जबकि असल में ये महज पैसे लेकर बेचे जा रहे हैं।
दो लाख पैतीस हज़ार में ‘भारत रत्न’ भी मिल रहा है
दरअसल, मैंने एक फ़ेसबुक पोस्ट देखी जिसमें ‘भारत रत्न सम्मान’ के लिए नामांकन आमंत्रित किया जा रहा था। मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ, क्योंकि यह अवॉर्ड भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। ऐसे कैसे कोई थर्ड पार्टी इसका नॉमिनेशन मंगा सकती है और बक़ायदा शुल्क के साथ। जब मैंने थोड़ा रिसर्च किया, तो पता चला कि यह छद्म पेज है। मैंने इस पेज पर दिये गये नंबर पर जब संपर्क किया तो मुझसे बक़ायदा मेरी प्रोफाइल माँगी गई और कहा गया कि हम अपने स्तर पर वेरीफाई करने के बाद आपको सूचित करेंगे। हालाँकि उसके बाद मुझे कोई कॉल नहीं आयी और जिस लैंडिंग पेज पर मुझे नंबर मिला था वह वेबसाइट भी बंद कर दी गई है। शायद उन्हें समझ में आ गया था कि मेरे द्वारा पड़ताल की जा रही है।
बहरहाल, अवॉर्ड्स का वास्तविक महत्व तब होता है जब वे किसी के सच्चे और निःस्वार्थ योगदान के लिए प्रदान किए जाते हैं। लेकिन जब अवॉर्ड्स एक व्यापार बन जाते हैं, तो उनका मूल्य और प्रभाव दोनों ही कम हो जाते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल समाज की मूल्यों को कमजोर करती है, बल्कि उन लोगों के योगदान को भी नजरअंदाज करती है जो निस्वार्थ भाव से समाज की सेवा कर रहे हैं। अवॉर्ड्स का असली मकसद होता है समाज के प्रति किसी के योगदान का सम्मान करना। लेकिन जब ये सम्मान पैसों से तौले जाने लगें, तो उनका महत्व घटने लगता है।
मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफ़ेयर्स में रजिस्टर हैं सैकड़ों कंपनियाँ
अवॉर्ड्स के नाम पर मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफ़ेयर्स में सैकड़ों कंपनियाँ रजिस्टर हैं जो पैसे लेकर अवॉर्ड्स देने का काम कर रही हैं। मिनिस्ट्री को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या कंपनी बनाकर अवार्ड देने का धंधा जायज़ है या यह एक स्कैम है? मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफ़ेयर्स में रजिस्टर कंपनियों का बिज़नेस क्या है और वो बेसिकली किस तरह के प्रॉडक्ट्स को लेकर मार्केट में है यह स्पष्ट होना ज़रूरी है। दूसरे, अवॉर्ड्स के नाम पर बनी कंपनियों ने क्या अपने दस्तावेज में यह स्पष्ट किया है कि उनके द्वारा जो अवॉर्ड्स वितरित किए जाएँगे उसके लिए शुल्क अदा करना होगा? अगर नहीं तो यह एक ऐसा स्कैम है जिसे सरकारी जामा पहनाकर किया जा रहा है क्योंकि यह कंपनियाँ ख़ुद को सेमी गवर्नमेंट बताकर लोगों को भरोसे में लेती हैं और अपने इवेंट्स कराती हैं जिसमें सो-कॉल्ड अवॉर्ड्स किसी सेलिब्रिटी या राजनेता के हाथों से प्रतिभागियों (टेक्निकली जिसने अवार्ड ख़रीदने के पैसे दिये हैं) को दिया जाता है।
पैसे देकर लिए गए अवॉर्ड्स नैतिक रूप से ग़लत
अब सवाल उठता है कि ये सब क्यों हो रहा है? कैसे अवॉर्ड्स का यह बाज़ार फल फूल रहा है और लोग पैसे देकर अवॉर्ड्स लेने में कोई गुरेज़ नहीं कर रहे। दरअसल, आज के दौर में सोशल मीडिया पर ख़ुद को ख़ास बताना और दिखाना ज़्यादा चलन में है। लोग इस बात को लेकर ज़्यादा चिंतित हैं कि वे दूसरों के सामने कैसे दिख रहे हैं, बजाए इसके कि उन्होंने समाज के लिए कितना काम किया है। अवॉर्ड्स पाने के लिए पैसे देकर ख़रीदे गए सम्मान में ‘आत्मगौरव’ महसूस करना शायद हमारे समाज की सबसे बड़ी विडम्बना बन है। हम यह जानते हैं कि जो सम्मान हमें दिया गया है उसकी क़ीमत आयोजकों ने वसूल ली है बावजूद हम फर्जी दिखावे में उसे ले रहे हैं।
पैसे देकर लिए गए अवॉर्ड्स नैतिक रूप से ग़लत है ही साथ ही इससे वास्तविक प्रतिभाओं और समाजसेवकों का अपमान होता है। और, समाज की दृष्टि में भी अवॉर्ड्स का महत्त्व कम हो जाता है। ‘अवॉर्ड्स’ के इस मौजूदा ‘बाज़ार’ को रोकने के लिए समाज और सरकार दोनों को मिलकर काम करना होगा। ऐसी कंपनियों पर रोक लगानी होगी, जो अवॉर्ड्स के नाम पर व्यापार कर रही हैं और लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही हैं।