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ज़हर बेच रहे हैं स्ट्रीट फ़ूड वेंडर्स, स्वाद के चक्कर में स्वास्थ्य का समझौता न करें

Street food vendors are selling poison, do not compromise on health for the sake of taste

द लोकतंत्र/ उमा पाठक : बनारस की कचौड़ी सब्ज़ी मेरी फ़ेवरेट है। रामनगर की लस्सी मैं बहुत मिस करती हूँ। गोदौलिया की गलियों में मिलने वाले साउथ इंडियन फ़ूड के तो क्या ही कहने, लिखते हुए मन कर रहा है कि पहुँच जाऊँ और जी भर कर स्वाद का लुत्फ़ उठाऊँ। दरअसल, भारत का स्ट्रीट फूड कल्चर बेहद समृद्ध और विविधतापूर्ण है। सिर्फ़ बनारस ही नहीं देश के हर कोने में आपको ऐसा अनोखा स्वाद मिलेगा जो उस इलाके की संस्कृति, परंपराओं और स्थानीयता का प्रतिनिधित्व करता है। भारत के अलग-अलग क्षेत्रों का स्ट्रीट फूड वहां के लोगों के रहन-सहन, मौसम, भूगोल और भावना से गहरे से जुड़ा हुआ है। भारत के स्ट्रीट फ़ूड देश के खानपान की आत्मा को दर्शाता है, और दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी भारतीय स्ट्रीट फूड हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है।

भारत का ‘जायकेदार कल्चर’ बर्बाद हो रहा है

हालांकि, भारत का यह समृद्ध विरासत आज के दौर में एक गंभीर ख़तरे का सामना कर रहा है। आज के समय में भारत की गलियों, मोहल्लों और बाजारों में मिलने वाले अधिकांश स्ट्रीट फूड साफ-सफाई और गुणवत्ता के मामले में स्वास्थ्य से समझौता करते नज़र आते हैं। कई जगहों पर खाद्य सुरक्षा के मानकों की कमी और स्वच्छता के अभाव ने इस ‘जायकेदार कल्चर’ को बर्बाद करने का काम किया है। सड़क किनारे रेहड़ियों और कार्ट पर बिकने वाला यह खाना अधिकतर बिना किसी साफ-सफाई के, गंदगी भरे वातावरण में तैयार किया जाता है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा के मानकों का पालन न करने की वजह से यह भोजन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बन जाता है। तकनीकी तौर पर कहें तो आज स्ट्रीट फ़ूड वेंडर्स ज़हर बेच रहे हैं।

अनगिनत बार यह देखा गया है कि स्ट्रीट फूड विक्रेता पानी और कच्चे माल का इस्तेमाल बेहद गंदे तरीके से करते हैं। दूषित पानी, सड़ी गली सब्जियों के इस्तेमाल से यह अपना सामान तैयार करते हैं। इंटरनेट पर वायरल क्लब कचौड़ी वाला हो या बाबा का ढाबा, या कोल्डड्रिंक से आमलेट बनाने वाले हों, फ़ूड सेफ्टी के स्टैंडर्ड मानक का इस्तेमाल कहीं नहीं होता। और, सबसे हास्यास्पद स्थिति यह है कि हमारे भारत का फ़ूड सेफ्टी डिपार्टमेंट जिसकी ज़िम्मेदारी है कि वह इंश्योर करे कि बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थ मानक के अनुरूप और स्वास्थ्य से समझौता करने वाला न हो; वह आँख मूँदकर यह सब बिकने दे रहा है।

खाद्य सुरक्षा का मुद्दा एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या है, लेकिन सरकार की भूमिका इस दिशा में बेहद लापरवाह दिखाई देती है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) की स्थापना खाद्य सुरक्षा मानकों को लागू करने के लिए की गई थी, लेकिन इसका प्रभाव सीमित है। स्ट्रीट फूड विक्रेताओं पर इन नियमों का पालन करवाने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की है, लेकिन सच्चाई यह है कि निरीक्षण और निगरानी की प्रक्रिया बेहद कमजोर है। यहाँ तक की नब्बे फ़ीसदी स्ट्रीट फ़ूड वेंडर्स के पास फ़ूड लाइसेंस तक नहीं है। यानी, जवाबदेही और ज़िम्मेदारी शून्य। और यह स्थिति सिर्फ़ स्ट्रीट फ़ूड वेंडर्स के मामले तक ही सीमित नहीं है। भारत के सबसे बड़े ट्रांसपोर्ट नेटवर्क रेलवे में भी खाने की गुणवत्ता को लेकर अक्सर गंभीर सवाल उठाये जाते रहे हैं।

लापरवाह सरकार, ग़ैर ज़िम्मेदार सरकारी संस्थाएँ

खाद्य सुरक्षा के मामले में सरकार की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है, लेकिन भारत में इस दिशा में सरकार की लापरवाही और विफलता साफ तौर पर नज़र आती है। चाहे वह केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, वे इस समस्या की गंभीरता को नजरअंदाज कर रही हैं। FSSAI जैसे संस्थान नियम तो बनाते हैं, लेकिन उनके पालन को लेकर ढिलाई बरती जाती है। नियमित जांच और निरीक्षण की कमी के चलते स्ट्रीट फूड विक्रेताओं पर कोई दबाव नहीं होता कि वे स्वच्छता के नियमों का पालन करें। संस्थाओं के ग़ैर ज़िम्मेदार व्यवहार की वजह से देश में कुछ भी बिक रहा है क्योंकि मानक तय करने वाली संस्था को कोई फर्क नहीं पड़ता कि मानक पूरे भी किए जा रहे हैं या नहीं।

डर, ज़िम्मेदारी और जवाबदेही तो इस देश में जैसे किसी को पता ही नहीं है। कैंसर, पेट की बीमारियाँ, और फूड पॉइजनिंग जैसे गंभीर बीमारियों से हर चौथा पाँचवा भारतीय हर रोज़ रूबरू होता है बावजूद अनहाईजिनिक स्ट्रीट फ़ूड के प्रति उसका लगाव कम नहीं हो रहा। यही नहीं, देश में लोगों को खाद्य सुरक्षा से संबंधित जागरूकता भी बहुत कम है। जनता को यह समझना बेहद जरूरी है कि स्वाद से ज्यादा महत्वपूर्ण स्वास्थ्य है। सरकार को भी चाहिए कि वे स्ट्रीट फ़ूड वेंडर्स के लिये सेफ़्टी स्टैंडर्ड सेट करें, हाइजीन का पालन हो रहा है या नहीं इसको जाँचने के लिये टीम बनें। स्ट्रीट फ़ूड के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग हो और जनता भी यह सुनिश्चित करे कि जहां सेफ़्टी स्टैंडर्ड और नॉर्म्स फॉलो नहीं हो रहे वहाँ से कुछ ख़रीदे और खाये नहीं।

सरकार को इस दिशा में बड़े स्तर पर अभियान चलाने की जरूरत है, जिसमें लोगों को बताया जाए कि साफ-सुथरा और सुरक्षित भोजन खाना कितना जरूरी है। साथ ही, सरकार को स्ट्रीट फूड विक्रेताओं के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम्स का आयोजन करना चाहिए, जिसमें उन्हें स्वच्छता के नियम सिखाए जाएं और उनके अनुपालन को सख्ती से लागू किया जाए। जब तक साफ-सफाई और स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक स्वाद के इस अनमोल खजाने पर खतरा मंडराता रहेगा और हम तेज़ी से ‘कैंसर स्टेट’ बनते जाएँगे।

इस आर्टिकल की लेखिका उमा पाठक पेशेवर पत्रकार हैं और मौजूदा समय में एक मीडिया संस्थान में असिस्टेंट प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं। इस लेख में उन्होंने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।

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