द लोकतंत्र : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने एक बार फिर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए अपनी नीति में नरमी दिखाई है। केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट (BPS) की बड़ी कटौती करते हुए इसे 5.25% कर दिया। यह कटौती MPC के सभी छह सदस्यों के सर्वसम्मति से समर्थन के बाद की गई, जो यह दर्शाता है कि नीतिगत रुख में बदलाव पूरी तरह औचित्यपूर्ण है। फरवरी 2025 से अब तक कुल 125 BPS की कमी की जा चुकी है।
नीतिगत नरमी का आधार: मुद्रास्फीति और विकास का संयोजन
RBI गवर्नर मल्होत्रा ने रेपो रेट घटाने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पिछले कुछ महीनों में मुद्रास्फीति तेजी से नीचे आई है और अब वह केंद्रीय बैंक के तय कम्फर्ट ज़ोन से भी कम हो चुकी है।
- मजबूत आर्थिक वृद्धि: वहीं दूसरी तरफ, देश की आर्थिक वृद्धि (GDP) उम्मीद से मजबूत बनी हुई है। महंगाई कम और ग्रोथ तेज होने का यह अनुकूल संयोजन केंद्रीय बैंक को पॉलिसी को नरम करने का पर्याप्त अवसर प्रदान करता है, जिससे बाजारों में पैसे का प्रवाह बढ़ाया जा सके।
लिक्विडिटी बढ़ाने के दो बड़े उपाय
रेपो रेट घटाने के अलावा, RBI ने बैंकिंग सिस्टम में नकदी (लिक्विडिटी) बढ़ाने के लिए दो महत्वपूर्ण उपायों का ऐलान किया है:
- बॉन्ड खरीद: सिस्टम में पैसे की उपलब्धता आसान बनाने के लिए ₹1 लाख करोड़ के बॉन्ड खरीदने की घोषणा।
- फॉरेक्स स्वैप: ₹4,50,000 करोड़ के फॉरेक्स स्वैप की घोषणा। इस कदम का उद्देश्य बैंकों के पास पर्याप्त नकदी सुनिश्चित करना है, ताकि दरों में कटौती का फायदा जल्दी ग्राहकों तक पहुँच सके।
डॉलर-रुपया स्वैप की कूटनीति
फॉरेक्स स्वैप विशेष रूप से तब उपयोगी होता है जब रुपये पर दबाव होता है। हाल ही में रुपये ने 90.42 के रिकॉर्ड निचले स्तर को छुआ था। इस स्वैप के तहत RBI डॉलर बेचकर अस्थायी रूप से रुपये को सिस्टम में डालता है, और बाद में उन्हें वापस खरीद लेता है। यह प्रक्रिया बाजार में अस्थाई तरलता तो लाती है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से रुपये के प्रवाह को बढ़ाए बिना बाजार को स्थिर करने में मदद करती है।
RBI के इस समग्र दृष्टिकोण से बॉन्ड मार्केट ने तुरंत सकारात्मक प्रतिक्रिया दी (10 साल की सरकारी बॉन्ड यील्ड गिरकर 6.51% पर आई), जबकि इक्विटी बाजार शांत रहा। स्पष्ट है कि बाजार की नजर अब तरलता की स्थिति और रुपये की स्थिरता पर ज्यादा टिकी है।

