द लोकतंत्र/ नई दिल्ली : वृंदावन स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन और उसके आस-पास के क्षेत्र के विकास को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने मंदिर प्रशासन को लेकर जारी विवाद और राज्य सरकार के हस्तक्षेप पर संज्ञान लेते हुए एक सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज की अध्यक्षता में कमेटी गठित करने का संकेत दिया है, जो मंदिर के प्रबंधन और विकास कार्यों की निगरानी करेगी। साथ ही आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की भी इस कार्य में मदद ली जाएगी, ताकि मंदिर के ऐतिहासिक महत्व को सुरक्षित रखा जा सके। सुनवाई अब मंगलवार, 5 अगस्त की सुबह 10:30 बजे होगी।
मंदिर में धार्मिक गतिविधियों और मैनेजमेंट को लेकर विवाद
मंदिर प्रबंधन कमेटी ने राज्य सरकार के अध्यादेश का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उनका कहना है कि सरकार द्वारा बिना किसी अधिकार के मंदिर के प्रशासनिक कार्यों में हस्तक्षेप किया गया और मंदिर फंड के इस्तेमाल को लेकर 15 मई को सुप्रीम कोर्ट से आदेश भी ले लिया गया। इस आदेश के अनुसार बांके बिहारी कॉरिडोर के निर्माण के लिए मंदिर के फंड का उपयोग किया जा सकता है। इसके तुरंत बाद सरकार की ओर से एक अध्यादेश भी जारी कर दिया गया, जिससे सदियों से मंदिर की देखरेख कर रही गोस्वामी परिवार की भूमिका कमजोर हो गई।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक स्थल है, जिसमें आंतरिक विवाद पहले से थे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने इसमें अनावश्यक रूप से दखल देकर न केवल मंदिर की स्वायत्तता को प्रभावित किया बल्कि बिना सुने ही सुप्रीम कोर्ट से मंदिर फंड के उपयोग का आदेश भी प्राप्त कर लिया।
15 मई के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची शामिल थे, ने तीखे सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि मंदिर निजी हो सकता है, लेकिन देवता और उनकी सेवा सार्वजनिक हैं। वहां लाखों श्रद्धालु आते हैं, ऐसे में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर के फंड का उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता? कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर याचिकाकर्ता को अध्यादेश से आपत्ति है, तो उसे हाई कोर्ट में चुनौती देनी चाहिए।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि 15 मई को जारी आदेश, जिसके तहत मंदिर के फंड से कॉरिडोर का निर्माण किया जाना था, वापस लिया जा सकता है। साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक विकास कार्य सरकार की जिम्मेदारी है और इसके लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
बांके बिहारी मंदिर से जुड़े 15 मई के आदेश को वापस लिया जा सकता है
लगभग 50 मिनट चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि बांके बिहारी मंदिर से जुड़े 15 मई के आदेश को वापस लिया जा सकता है। कोर्ट ने मंदिर प्रबंधन की पारदर्शिता सुनिश्चित करने और श्रद्धालुओं की सुविधाओं में सुधार के उद्देश्य से एक नई निगरानी कमेटी के गठन का सुझाव दिया है। इस कमेटी की अध्यक्षता एक सेवानिवृत्त हाई कोर्ट जज करेंगे, जबकि मथुरा के जिलाधिकारी को भी इसका हिस्सा बनाया जाएगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि वृंदावन क्षेत्र का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिए मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र के समग्र विकास के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की विशेषज्ञता और सहयोग लिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल देते हुए स्पष्ट किया कि श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए आधारभूत ढांचे का विकास सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।