द लोकतंत्र/ राबी शुक्ला : उत्तर प्रदेश स्थित जनपद देवरिया के पोखर भिंडा गांव में कक्षा छह में पढ़ने वाले 15 वर्षीय छात्र नितिन शर्मा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। खबरों के मुताबिक़ नितिन पिछले कुछ समय से मोबाइल पर ऑनलाइन गेम्स की लत में फंस गया था और उसमें लाखों रुपये हार चुका था। घटना ने ऑनलाइन गेमिंग की बढ़ती समस्या, बच्चों की मोबाइल की लत और पैरेंटिंग को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर रही है। यह घटना इस बात की पुष्टि कर रहा है कि ऑनलाइन गेमिंग की लत अब केवल मनोरंजन से जुड़ी नहीं रही, बल्कि यह एक गहरे सामाजिक ख़तरे का रूप ले चुकी है।
दरअसल, पोखरभिंडा गांव निवासी नितिन शर्मा (15) पुत्र अंगद शर्मा कक्षा छह का छात्र था और ऑनलाइन गेमिंग की लत का शिकार था। वह मोबाइल पर लगातार ऑनलाइन गेम खेलता था। जानकारी के मुताबिक़ लगभग ढाई लाख रुपये हार जाने की वजह से वह डिप्रेशन में चला गया था जिसके बाद उसने अपनी ज़िंदगी समाप्त करने का निर्णय ले लिया।
ऑनलाइन गेमिंग के आकर्षण में फँस रहे किशोर
ऑनलाइन गेम्स, विशेषकर ऐसे खेल जो पैसों के लेन-देन या जुआ आधारित होते हैं, बच्चों, किशोरों और युवाओं को तेज़ी से आकर्षित करते हैं। यह गेम्स सिर्फ़ आर्थिक नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं। दरअसल, गेमिंग का आकर्षण तेजी से बच्चों के जीवन में घुसपैठ कर रहा है ऐसे में पैरेंट्स को विशेष रूप से सजग रहने की ज़रूरत है। विजुअल स्टिमुलेशन, इन-गेम प्राइज और लगातार नई उपलब्धियों के कारण बच्चे और किशोर इन खेलों में ज़रूरत से अधिक समय व्यतीत करते हैं। धीरे-धीरे, यह एक ऐसी लत बन जाती है जिससे बाहर निकलना उनके लिए कठिन हो जाता है।
डॉ आरके श्रीवास्तव ने कहा मोबाइल बच्चों के लिए ख़तरनाक
देवरिया मेडिकल कॉलेज में चाइल्ड केयर स्पेशलिस्ट डॉ आरके श्रीवास्तव से इस संदर्भ में हमने बात की और जानना चाहा कि क्या महज़ 15 वर्षीय किशोर अवसाद का शिकार हो सकता है? इसपर डॉ आरके श्रीवास्तव ने कहा कि एक किशोर की मानसिकता तेजी से बदलती है, और इस उम्र में वे असफलताओं को आसानी से संभाल नहीं पाते। 07 से 16 ऐसी उम्र होती है जहां पैरेंट्स को बच्चों का विशेष ख़्याल रखना चाहिए। नितिन द्वारा आत्महत्या का कदम उठाये जाने की ख़बर को विचलित करने वाला बताते हुए उन्होंने कहा कि मैं ऐसे बहुत से केसेस देखता हूँ जहां बच्चे चिड़चिड़ेपन, एक्सट्रीम हाइपर का शिकार होते हैं। बहुधा मामलों में बच्चों के पैरेंट्स यह स्वीकार करते हैं कि बच्चे मोबाइल के साथ समय ज़्यादा बिताते हैं।
उन्होंने द लोकतंत्र से बातचीत करते हुए कहा, मोबाइल के साथ ज़्यादा समय बिताना धीरे-धीरे बच्चों को अवसाद (डिप्रेशन) और चिंता (एंग्जायटी) जैसी मानसिक समस्याओं में धकेल सकता है। ऐसे में माता-पिता की भूमिका बच्चों की मानसिक स्थिति को सुधारने और उनकी गेमिंग लत को दूर करने में बेहद महत्वपूर्ण होती है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि बच्चों के साथ नियमित और खुली बातचीत होनी चाहिए। बच्चों को यह महसूस होना चाहिए कि वे किसी भी समस्या के बारे में अपने माता-पिता से बात कर सकते हैं।
पैरेंटिंग की भूमिका और बच्चों को गेमिंग की लत से बचाने के उपाय
एक्सपर्ट्स का मानना है कि माता-पिता की भूमिका ऑनलाइन गेमिंग की लत से बच्चों को बचाने में बेहद महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, उन्हें बच्चों के स्क्रीन टाइमिंग को नियंत्रित करना चाहिए। मोबाइल और कंप्यूटर का सही तरीके से उपयोग करने की आदत बच्चों में डालनी चाहिए। यह बेहद जरूरी है कि माता-पिता बच्चों के साथ नियमित रूप से बातचीत करें और उन्हें ऑनलाइन गेमिंग के खतरों के बारे में जागरूक करें। बच्चों को यह बताने की जरूरत है कि ये खेल सिर्फ मनोरंजन के लिए होते हैं और इसके पीछे पैसा या प्रतियोगिता की भावना उन्हें मानसिक और आर्थिक नुकसान पहुंचा सकती है।
बच्चों को गेम्स के बजाय शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने वाली गतिविधियों में शामिल करना चाहिए। उन्हें खेलकूद, संगीत, कला या अन्य रचनात्मक कामों में रुचि दिलाई जा सकती है ताकि वे मोबाइल और गेम्स से दूर रहें। इसके अलावा, परिवार के साथ अधिक समय बिताना भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे खुद एक सकारात्मक रोल मॉडल बनें और तकनीक के सही उपयोग का उदाहरण प्रस्तुत करें।
काउंसलिंग के द्वारा अवसाद से निकलने में मदद मिल सकती है
जब कोई बच्चा ऑनलाइन गेमिंग की लत में फंसता है और अवसाद का शिकार हो जाता है, तो उसकी मानसिक स्थिति का ध्यान रखना सबसे महत्वपूर्ण होता है। यहां पर काउंसलिंग की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे बच्चों को काउंसलिंग और मनोवैज्ञानिक सहायता दी जानी चाहिए। इसके माध्यम से उन्हें अपने मन की स्थिति को समझने और उसे सुधारने का मौका मिलता है।
डॉक्टरों और मनोवैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार, अवसाद से निकलने के लिए बच्चों को सकारात्मक गतिविधियों में शामिल करना और उनका ध्यान अन्य रचनात्मक कार्यों की ओर मोड़ना जरूरी होता है। इसके अलावा, ध्यान और योग जैसी पारंपरिक तकनीकों का अभ्यास भी उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ बनाए रखने में मदद कर सकता है। काउंसलिंग से बच्चों को यह समझने का मौका मिलता है कि जीवन में समस्याओं का सामना कैसे किया जाए और उनका समाधान कैसे निकाला जाए।
समाज और सरकार की भूमिका
बहरहाल, ऑनलाइन गेमिंग के बढ़ते खतरों से निपटने के लिए सरकार को महत्वपूर्ण कदम उठाने की ज़रूरत है। सरकार को ऑनलाइन जुआ और सट्टेबाजी को नियंत्रित करने के लिए न सिर्फ़ सख्त कानून बनाने चाहिए बल्कि एक रेगुलरिटी बॉडी भी बनाना चाहिए जहां ऐसे गेमिंग प्लेटफ़ार्म्स को नियंत्रित किया जा सके। साथ ही, ऐसे गेमिंग प्लेटफ़ार्म्स के प्रचार की गाइडलाइन भी तय हो ताकि बच्चों और किशोरों को इस लत से बचाया जा सके। विज्ञापनों पर सख्त प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए जो गेमिंग को ग्लैमराइज करते हैं।
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इसके अलावा शैक्षिक संस्थानों को भी बच्चों और किशोरों को ऑनलाइन गेमिंग के खतरों के प्रति जागरूक करना चाहिए। स्कूलों में कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित किए जायें, जहां बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य और तकनीक के सही उपयोग के बारे में जानकारी दी जा सके। ऑनलाइन गेमिंग आज समाज के सामने ऐसी समस्या बनकर उभर चुकी है जिसकी जद में हर बच्चा है। कल को कोई दूसरा नितिन न बने इसके लिए जागरूकता कार्यक्रमों का चलाया जाना ज़रूरी है। बच्चों को सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण देने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। समाज के सभी वर्गों को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे अपनी डिजिटल गतिविधियों के प्रति जागरूक और जिम्मेदार बनें।
बच्चों को सही मार्गदर्शन, सकारात्मक वातावरण और तकनीक के संतुलित उपयोग का महत्व सिखाकर ही हम उन्हें इस खतरनाक लत से बचा सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें और उन्हें किसी भी तरह की मानसिक समस्या से उबरने में मदद करें।