द लोकतंत्र/ आयुष कृष्ण त्रिपाठी : लोकतंत्र की जड़ें तभी मजबूत होती हैं जब चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी, समावेशी और विश्वसनीय हो। भारत जैसे विविधतापूर्ण और विशाल देश में यह दायित्व और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस पृष्ठभूमि में, बिहार जो कि न केवल जनसंख्या की दृष्टि से घना है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी अत्यंत सक्रिय राज्य है की मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) चुनाव प्रक्रिया की सटीकता सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम कदम है।
भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा शुरू की गई यह प्रक्रिया 2025 में संभावित विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए की जा रही है। इसका उद्देश्य राज्य की मतदाता सूची को अद्यतन, त्रुटिरहित और समावेशी बनाना है, जिससे प्रत्येक पात्र नागरिक का नाम सूची में हो और कोई भी अयोग्य नाम उसमें न रहे।
चुनावी डेटा में व्यापक विसंगतियाँ और सुधार की आवश्यकता
विशेष गहन पुनरीक्षण कोई साधारण अद्यतन प्रक्रिया नहीं है। यह एक केंद्रित अभियान होता है, जिसे केवल तब लागू किया जाता है जब चुनावी डेटा में व्यापक विसंगतियाँ और सुधार की आवश्यकता हो। बिहार में इसकी आवश्यकता कई कारणों से उत्पन्न हुई जैसे आंतरिक और बाहरी प्रवास में बढ़ोत्तरी, मृतकों के नामों की निरंतर मौजूदगी, दोहराव वाली प्रविष्टियाँ, और निवास परिवर्तन के बावजूद मतदाता सूची में पुराने पते पर नाम दर्ज रहना।
कोविड-19 महामारी के पश्चात प्रवासन की दर में अचानक वृद्धि हुई, जिससे लाखों लोग या तो अपने मूल गांवों में लौटे या अन्य स्थानों पर रोजगार हेतु चले गए। इन जनगतिकीय परिवर्तनों ने मतदाता सूची को वास्तविक स्थिति से अलग कर दिया, जिससे इसमें व्यापक सुधार की आवश्यकता उत्पन्न हुई।
इसके अतिरिक्त, चुनाव आयोग ने कुछ जिलों में महिला मतदाताओं की कम भागीदारी को लेकर चिंता जताई है। यह लिंग असंतुलन लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व की समावेशिता को प्रभावित करता है। इसलिए SIR की प्राथमिकताओं में से एक यह भी है कि महिलाओं, हाशिए पर बसे समुदायों और आदिवासी आबादी का पर्याप्त पंजीकरण सुनिश्चित किया जाए। साथ ही, पहली बार मतदान करने वाले युवा नागरिकों को सूची में शामिल करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। आयोग चाहता है कि मृतकों, स्थान बदलने वाले लोगों और डुप्लिकेट नामों को हटाया जाए और नए, पात्र मतदाताओं को पंजीकृत किया जाए, जिससे मतदाता सूची यथासंभव सटीक और भरोसेमंद बन सके।
आयोग ने बहुस्तरीय रणनीति अपनाई है
इस व्यापक अभियान को प्रभावी रूप देने के लिए आयोग ने बहुस्तरीय रणनीति अपनाई है। सबसे जमीनी स्तर पर बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) हर घर जाकर मतदाता की जानकारी का भौतिक सत्यापन कर रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ डिजिटल सुविधा सीमित है। यह चरण अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में अक्सर लोग डिजिटल माध्यम से जुड़ नहीं पाते। वहीं, डिजिटल स्तर पर ERONET (Electoral Roll Management System) इस पूरे अभ्यास की रीढ़ बना हुआ है, जो डेटा के केंद्रीकृत प्रबंधन में सहायक है। इसके साथ ही राज्यभर में विशेष मतदाता शिविर लगाए जा रहे हैं, विशेषकर स्कूलों, कॉलेजों, पंचायत भवनों और बाजार क्षेत्रों में, ताकि नागरिक अपने विवरण की जाँच कर सकें, सुधार करवा सकें और नए पंजीकरण करा सकें।
मतदाता सूची में बदलाव हेतु आवश्यक फॉर्म जैसे फॉर्म 6 (नया पंजीकरण), फॉर्म 7 (नाम हटाने हेतु), और फॉर्म 8 (सुधार और स्थानांतरण हेतु) ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से उपलब्ध कराए जा रहे हैं। ECI ने नागरिक समाज संगठनों, छात्र संगठनों और राजनीतिक दलों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया है, ताकि जनसहभागिता बढ़े और अधिक से अधिक नागरिक जागरूक होकर इस अभियान में भाग लें।
इन प्रयासों के बावजूद, यह प्रक्रिया कई चुनौतियों से घिरी हुई है। उच्च प्रवासन दर के चलते कई नागरिक अपने निर्वाचन क्षेत्रों में उपस्थित नहीं हो पाते, जिससे उनका भौतिक सत्यापन बाधित होता है। इसके अलावा, डिजिटल साक्षरता की कमी ग्रामीण क्षेत्रों में प्रक्रिया को धीमा बना देती है। शहरी क्षेत्रों में, विशेषकर युवा मतदाताओं के बीच मतदान को लेकर जो उदासीनता देखी जाती है, वह भी एक बड़ी चुनौती है।
मतदाता सूची में पारदर्शिता और सटीकता समय की माँग
मतदाता सूची में लैंगिक असमानता अब भी कुछ जिलों में एक ज्वलंत मुद्दा है। सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं, परिवारिक प्रतिबंध और सूचना की कमी महिलाओं की सहभागिता को सीमित करती हैं। ऐसे में BLO की संवेदनशीलता और स्थानीय सहयोगी संस्थाओं की भागीदारी से यह अंतर पाटा जा सकता है। हालांकि प्रक्रिया जटिल है, लेकिन यह बिहार के चुनावी भविष्य के लिए एक महत्त्वपूर्ण नींव रखती है। मतदाता सूची में पारदर्शिता और सटीकता से न केवल सुचारू मतदान संभव होगा, बल्कि इससे चुनावी निष्पक्षता और परिणामों की वैधता पर भी जनविश्वास बढ़ेगा।
बिहार का यह विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान राष्ट्रीय दृष्टि से भी प्रेरणादायक बन सकता है। यह अन्य राज्यों को यह सिखा सकता है कि एक सशक्त, नागरिक-केंद्रित और तकनीक-सक्षम प्रणाली कैसे लोकतंत्र को अधिक सहभागी और समावेशी बना सकती है। जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं, तो केवल चुनाव नहीं, बल्कि चुनाव में नागरिक की भागीदारी, उसकी पहचान और उसकी प्रभावशीलता की बात करते हैं। मतदाता सूची को सटीक और अद्यतन बनाना उसी भागीदारी का मूल है। इसलिए, बिहार में चल रहा यह विशेष गहन पुनरीक्षण सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि लोकतंत्र को जमीनी हकीकत से जोड़ने वाला अभियान है।
निष्कर्षतः, यह कहना गलत नहीं होगा कि बिहार में मतदाता सूची का यह विशेष गहन पुनरीक्षण न केवल 2025 के विधानसभा चुनावों को बेहतर, पारदर्शी और समावेशी बनाएगा, बल्कि यह उस व्यापक लोकतांत्रिक चेतना का भी प्रतीक है जिसमें हर नागरिक की भागीदारी, हर वोट की महत्ता और हर नाम की प्रामाणिकता अनिवार्य है। भारत जैसे विशाल और विविध देश में, यह सुनिश्चित करना कि हर पात्र नागरिक की उपस्थिति मतदाता सूची में दर्ज हो, एक जनतांत्रिक कर्तव्य भी है और अधिकार भी।