द लोकतंत्र : राजनीति संभावनाओं का नाम है। बकवास सी लगने वाली थियरिज भी कभी कभी सर्वमान्य हो जाती है। यह ठीक वैसे ही है जैसे एक औसत कहानी और स्क्रिप्ट के साथ लेकिन टाइट सिनेमेटोग्राफ़ी पर बनी किसी फ़िल्म का हिट हो जाना। वरुण गांधी के बग़ावती तेवर की वजह से टिकट न देकर भाजपा द्वारा उनका पत्ता काट दिये जाने से कई संभावनाओं ने जन्म ले लिया है। वरुण के नाम के साथ जुड़ा ‘गांधी’ शब्द और ‘गांधी परिवार’ से जुड़ाव कहीं न कहीं उन्हें ‘कहीं और’ फिट करने में लगी है।
कांग्रेस ने वरुण गांधी पर डोरे डालना शुरू कर दिया है। वहीं सपा भी पलकें बिछाए वरुण के स्वागत का इंतज़ार कर रही है। अभी की बड़ी ख़बर यही है कि कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने वरुण गांधी को पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया है। उन्होंने कहा है कि वरुण गांधी को टिकट भी दिया जाएगा।
वरुण गांधी को कांग्रेस जॉइन करने का न्योता दे रहे अधीर रंजन
सियास्त में कोई भी दोस्ती और दुश्मनी परमानेंट नहीं होती। अवसर और महत्वाकांक्षाएँ तय करती हैं कि आगे कौन दोस्त होगा और कौन दुश्मन बना रहेगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल होने का न्योता दिया है। उन्होंने कहा कि, बीजेपी ने वरुण गांधी का टिकट इसलिए काटा है क्योंकि उनका ‘गांधी परिवार’ से संबंध है। चौधरी ने आगे कहा कि, वरुण बड़े नेता हैं और कांग्रेस में उनका टिकट बिल्कुल नहीं कटेगा।
उन्होंने आगे कहा, वरुण गांधी को कांग्रेस में आना तो चाहिए, उनके आने से खुशी होगी। बड़े दबंग नेता हैं, शिक्षित आदमी हैं। साफ सुथरी छवि है और गांधी परिवार से जुड़ाव भी है। इसीलिए उनको बीजेपी ने टिकट देने से इनकार किया है। इसलिए मुझे लगता है कि उनको आना चाहिए।
वरुण गांधी की बग़ावत क्या संकेत दे रही है?
गांधी परिवार की छोटी बहू मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी भारतीय जनता पार्टी में हैं। पार्टी में दोनों की मौजूदा स्थिति किसी से छिपी नहीं है। वरुण गांधी की बगावत के बाद उन्हें टिकट नहीं दिया जाना यह बताता है कि भाजपा अब इस ‘गांधी’ को ढोने के मूड में नहीं है। हालाँकि माँ को टिकट देकर यह भी बताने की कोशिश की गई कि वरुण गांधी को अनुशासन सीखना होगा। इस सबके बीच वरुण गांधी का नज़रिया क्या होना चाहिए? उन्हें किस हिसाब से फ़ैसला लेना चाहिए? संजय गांधी का पुत्र क्या पिता से भावनात्मक रूप से कनेक्ट है? क्या संजय गांधी के पुत्र के ज़ेहन में बिलकुल भी नहीं है कि वह वापस जाकर अपनी पिता की विरासत को सम्भाले, संजोये?
क्या हो अगर वरुण गांधी कांग्रेस में वापस लौट आयें?
गांधी परिवार के भीतर चालीस साल पहले खींची लकीर अगर मिट जाती है तो देश का सियासी भविष्य किस करवट बैठेगा यह सोचकर रोमांच आ रहा है। कांग्रेस की तरफ़ से न्योता आ गया है तो सोचने में क्या जाता है। सोचिए, क्या हो अगर वरुण गांधी कांग्रेस में वापस लौट आयें? क्या हो अगर वह कभी अपने पिता के संसदीय क्षेत्र रही अमेठी से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ें? क्या स्मृति ईरानी रोक पायेंगी भावनाओं के उस ज्वार को जो वरुण को अमेठी से अपने पिता की वजह से कनेक्ट करता है? शायद नहीं।
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अमेठी-रायबरेली सहित यूपी की बाक़ी बची सीटों पर कांग्रेस ने प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। पीलीभीत से वरुण गांधी को भाजपा ने टिकट नहीं दिया है। ऐसे में वरुण गांधी का एक फ़ैसला न सिर्फ़ कांग्रेस बल्कि ख़ुद वरुण गांधी के सियासी भविष्य को तय करने वाला साबित होगा। मेनका गांधी की नाराज़गी इंदिरा गांधी से थी। बाक़ी वरुण गांधी और राहुल गांधी एक ही आँगन में पले बढ़े हैं। दोनों के भीतर गांधी परिवार का खून दौड़ता है। पारिवारिक एका होना बहुत मुश्किल नहीं है। मन को मनाना ही है बस।