द लोकतंत्र/ नई दिल्ली डेस्क : वेब सीरीज़ मिर्ज़ापुर में मुन्ना त्रिपाठी कहता है कि मैं नहीं मरूँगा, मैं अमर हूँ। मुन्ना भैया का यह डायलॉग इस सदी में सच होने जा रहा है। दावों की मानें तो अमरता अब कोई कल्पना नहीं रह जाएगी। जिस अमर जीवन की कल्पना हमने पौराणिक कथाओं में ‘अमृत’ के ज़रिए की थी, या जिसे हमने साइंस फिक्शन फिल्मों में देखा, वह अब विज्ञान के ज़रिए हकीकत में बदलने की ओर बढ़ रहा है। गूगल के पूर्व इंजीनियर और विश्वविख्यात भविष्यवक्ता रे कुर्जवील का दावा है कि साल 2030 तक इंसान जैविक रूप से अमर हो सकता है।
आख़िर कौन हैं रे कुर्जवील?
रे कुर्जवील कोई सामान्य वैज्ञानिक नहीं हैं, बल्कि उन्हें आधुनिक समय का भविष्यज्ञ कहा जाता है। उनके अब तक किए गए 147 पूर्वानुमानों में से 86% से अधिक सटीक साबित हुए हैं। उन्होंने इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बायोटेक्नोलॉजी जैसी तकनीकों के विस्तार की भविष्यवाणी दशकों पहले ही कर दी थी। 1999 में उन्हें अमेरिका का सर्वोच्च तकनीकी सम्मान ‘नेशनल मेडल ऑफ टेक्नोलॉजी’ भी दिया गया। इसलिए जब वे कहते हैं कि इंसान अमर हो सकता है, तो यह केवल कल्पना नहीं मानी जाती, बल्कि इसे तकनीकी दिशा में एक संभावित पड़ाव माना जा रहा है।
कुर्जवील के अनुसार आने वाले वर्षों में हमारे शरीर में नैनोबॉट्स (सूक्ष्म रोबोट) डाले जाएंगे, जो हमारे रक्त में लगातार तैरते रहेंगे। ये रोबोट बीमारियों को शुरुआती स्तर पर पहचानकर उन्हें ठीक करेंगे, कोशिकाओं की मरम्मत करेंगे और शरीर में उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को रोकेंगे। इस तरह शरीर हमेशा स्वस्थ और युवा बना रह सकता है। ये नैनोबॉट्स शरीर की निरंतर निगरानी और मरम्मत का कार्य करेंगे — मानो हमारे अंदर एक ‘डिजिटल डॉक्टर’ हर समय तैनात हो।
सिंग्युलैरिटी के सिद्धांत से बदल जाएगा प्रकृति का तय नियम
इसके साथ ही कुर्जवील ने एक और बड़ा दावा किया है कि 2029 तक मशीनें मानव जैसी बुद्धि हासिल कर लेंगी और ट्यूरिंग टेस्ट पास कर जाएंगी। इसका अर्थ है कि मशीनें इंसानों की तरह सोचने, समझने और प्रतिक्रिया देने लगेंगी। इसके बाद इंसान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ऐसा मेल होगा कि हमारा मस्तिष्क भी क्लाउड में अपलोड किया जा सकेगा। सोचिए, जब हमारी याददाश्त डिजिटल होगी और निर्णय लेने की क्षमता मशीनों जैसी तीव्र; तब इंसान और मशीन में फर्क करना ही मुश्किल हो जाएगा।
यह सब जुड़ा है ‘सिंग्युलैरिटी’ नामक अवधारणा से, जिसे कुर्जवील 2045 तक आता हुआ देख रहे हैं। सिंग्युलैरिटी वह क्षण है जब तकनीक इतनी उन्नत हो जाएगी कि वह मानव सभ्यता की प्रकृति को ही बदल देगी। उस दौर में इंसानी चेतना शरीर की सीमाओं से निकलकर डिजिटल रूप ले लेगी और बुद्धिमत्ता अरबों गुना अधिक हो जाएगी।
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यह भविष्य एक तरफ जहां रोमांचित करता है, वहीं डर भी पैदा करता है। अगर इंसान अमर हो जाएगा, तो जीवन, मृत्यु, रिश्तों और समाज की परिभाषाएं पूरी तरह बदल जाएंगी। GPT-4 जैसे AI पहले ही साबित कर चुके हैं कि मशीनें संवाद कर सकती हैं, सोच सकती हैं और खुद से सीख भी सकती हैं। ऐसे में क्या यह भविष्य विकास की स्वाभाविक दिशा है या एक नई नैतिक चुनौती?
रे कुर्जवील का यह दावा दुनिया के वैज्ञानिक और तकनीकी समुदाय को नई बहस की ओर ले जा रहा है – कि क्या इंसान सचमुच अमर हो सकता है? और अगर हां, तो इसकी कीमत क्या होगी?