Advertisement Carousel
National

सुनवाई के दौरान CJI गवई ने कहा 1923 में हुआ होता वक्फ रजिस्ट्रेशन, तो आज विवाद ही नहीं होता

During the hearing, CJI Gavai said that if the Waqf registration had been done in 1923, then there would have been no dispute today

द लोकतंत्र / नई दिल्ली : वक्फ संशोधन कानून, 2025 (Waqf Amendment Act 2025) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अहम सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन करता है।

इस्लामिक परंपरा में कई वक्फ संपत्तियाँ सदियों पुरानी

उन्होंने कहा कि अगर कोई संपत्ति 200 साल पहले कब्रिस्तान या इबादतगाह के लिए दी गई थी, तो अब सरकार उसे वापस कैसे मांग सकती है? क्या अगला कदम यह होगा कि लखनऊ का ऐतिहासिक इमामबाड़ा (Lucknow Imambara) भी वापस लिया जाएगा?

कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि इस्लामिक परंपरा में कई वक्फ संपत्तियाँ सदियों पुरानी हैं, और अब सरकार यह कह रही है कि दस्तावेज़ लाओ, वरना संपत्ति विवादित मानी जाएगी और वक्फ का कब्जा खत्म हो जाएगा। उन्होंने तर्क दिया कि कब्रिस्तान जैसी जगहें जो 200 साल से अस्तित्व में हैं, उन्हें सरकारी संपत्ति कहकर वापस लेना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

मुख्य न्यायाधीश गवई ने इस पर कहा कि अगर 1923 के वक्फ कानून के तहत संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन करवा लिया गया होता, तो आज ऐसी स्थिति नहीं आती। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 100 साल पहले भी रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था अस्तित्व में थी, लेकिन उसका पालन नहीं हुआ। वहीं, जस्टिस मसीह ने सवाल किया कि अगर किसी संपत्ति पर वक्फ का दावा किया जाए और जांच शुरू हो जाए, तो क्या जांच के दौरान वक्फ का अधिकार समाप्त हो जाएगा?

याचिकाकर्ताओं को कानून की उस धारा पर भी आपत्ति है, जिसके तहत कोई भी व्यक्ति वक्फ संपत्ति होने का दावा कर सकता है, और सरकार के अधिकारी द्वारा जांच की प्रक्रिया शुरू होते ही संपत्ति का अधिकार वक्फ से छिन सकता है। इससे संपत्ति पर वक्फ बोर्ड का दावा कमजोर हो जाता है और सरकार के पास निर्णय का एकतरफा अधिकार चला जाता है।

Team The Loktantra

Team The Loktantra

About Author

लोकतंत्र की मूल भावना के अनुरूप यह ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां स्वतंत्र विचारों की प्रधानता होगी। द लोकतंत्र के लिए 'पत्रकारिता' शब्द का मतलब बिलकुल अलग है। हम इसे 'प्रोफेशन' के तौर पर नहीं देखते बल्कि हमारे लिए यह समाज के प्रति जिम्मेदारी और जवाबदेही से पूर्ण एक 'आंदोलन' है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like

Sanjay Singh AAP
National

राज्यसभा सांसद संजय सिंह क्यों हुए निलंबित, क्या है निलंबन के नियम

द लोकतंत्र : आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को सोमवार को उच्च सदन (राज्यसभा) में हंगामा और
HSBC
National

HSBC की रिपोर्ट में महंगाई का संकेत, 5 फीसदी महंगाई दर रहने का अनुमान

द लोकतंत्र : HSBC की रिपोर्ट में महंगाई के संकेत मिले हैं। एचएसबीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि गेहूं

This will close in 0 seconds