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Kalp Kedar Temple History: उत्तरकाशी की आपदा में मलबे में दबा कल्प केदार मंदिर, जानें इससे जुड़ी पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएं

द लोकतंत्र: उत्तरकाशी के धराली गांव में आई भयावह आपदा ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। खीरगंगा नदी से आए मलबे में अब तक 5 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है और 100 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं। सेना, ITBP, NDRF और SDRF की टीमें दिन-रात राहत कार्यों में लगी हैं। लेकिन इस त्रासदी में केवल जीवन और संपत्ति का नुकसान नहीं हुआ, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर – कल्प केदार मंदिर भी मलबे में दब गया।

कल्प केदार मंदिर: केदारनाथ जैसा वास्तुशिल्प
स्थानीय लोगों का दावा है कि धराली गांव का कल्प केदार मंदिर बेहद प्राचीन है और इसका वास्तुशिल्प केदारनाथ धाम से मेल खाता है। इसी वजह से इसका नाम कल्प केदार रखा गया। कई स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह मंदिर भी केदारनाथ की तरह वर्षों तक आपदा में दबा रहा और 1945 में इसे दोबारा खोजा गया।

1945 में खुदाई के बाद मिला मंदिर
बताया जाता है कि 1945 में जब खीरगंगा का बहाव कम हुआ तो नदी के किनारे मंदिर के शिखर जैसा ढांचा दिखाई दिया। गांववालों ने खुदाई शुरू की और कुछ ही फुट नीचे उन्हें एक प्राचीन शिव मंदिर मिला, जिसमें शिवलिंग और नंदी की आकृति दिखाई दी। इसके बाद पूजा-पाठ पुनः आरंभ हुआ, लेकिन मंदिर अभी भी पूरी तरह से धरातल के ऊपर नहीं था।

गर्भगृह तक आती थी खीरगंगा की धारा
मंदिर के गर्भगृह में अक्सर खीरगंगा का जल आ जाता था। श्रद्धालु नीचे उतरकर दर्शन करते थे। लोगों ने मंदिर तक पहुंचने के लिए मिट्टी हटाकर एक संकरा रास्ता भी बनाया था, जो अब फिर से मलबे में दब गया है।

1816 में अंग्रेज यात्री ने किया था जिक्र
इतिहास में यह मंदिर 1816 में अंग्रेज यात्री जेम्स विलियम फ्रेजर के वृत्तांत में मिलता है, जिन्होंने भागीरथी के उद्गम की यात्रा के दौरान धराली के इन मंदिरों का उल्लेख किया था। 1869 में फोटोग्राफर सैमुअल ब्राउन ने भी इन मंदिरों की तस्वीरें ली थीं, जो अब पुरातत्व विभाग के पास संरक्षित हैं।

पांडव या आदि शंकराचार्य से जुड़ाव?
इस मंदिर की स्थापना को लेकर कई मान्यताएं हैं। कुछ इसे आदि शंकराचार्य द्वारा निर्मित मानते हैं, जबकि कुछ इसे पांडवों की यात्रा से जोड़ते हैं। मंदिर की नक्काशी और शैली कत्यूर वास्तुकला को दर्शाती है।

कल्प केदार मंदिर न केवल एक आध्यात्मिक केंद्र था बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति और इतिहास की जीवंत मिसाल भी। इसे फिर से संरक्षित करने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस धरोहर से जुड़ सकें।

Team The Loktantra

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