द लोकतंत्र: मंगलवार को उत्तरकाशी के धराली गांव में खीरगंगा नदी ने एक बार फिर से अपना रौद्र रूप दिखाया और चंद सेकेंड्स में पूरा गांव मलबे में तब्दील हो गया। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कोई पहली घटना नहीं है। 1835 में भी खीरगंगा ने इसी तरह का कहर बरपाया था, जिसमें कई गांवों के साथ-साथ 206 मंदिर तबाह हो गए थे।
190 साल बाद, 2025 में एक बार फिर धराली गांव खीरगंगा नदी की प्रलय का शिकार बना है। राहत और बचाव कार्य जारी है, लेकिन जैसे-जैसे रेस्क्यू आगे बढ़ रहा है, मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
खीरगंगा की चेतावनियाँ: अनसुनी
बताया जाता है कि खीरगंगा नदी ने इससे पहले 2004, 2012, 2013, 2018 और 2021 में भी अपना रौद्र रूप दिखाया था। लेकिन इन प्राकृतिक संकेतों को नजरअंदाज किया गया। हर बार की तरह, इस बार भी परिणाम भयावह रहा।
क्यों बार-बार आ रही हैं आपदाएं?
गढ़वाल क्षेत्र भूकंपीय जोन-5 में आता है, जो भारत का सबसे संवेदनशील इलाका है। मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) और मेन बाउंड्री थ्रस्ट (MBT) जैसी प्रमुख भौगोलिक दरारें इसी क्षेत्र से होकर गुजरती हैं। यही कारण है कि यह इलाका बार-बार प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है।
इतिहास में झांकें तो…
20 अक्टूबर 1991 को 6.4 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें 653 लोग मारे गए थे।
अक्टूबर 2022 में हिमस्खलन में 29 पर्वतारोहियों की मौत हुई थी।
2013 की बाढ़ ने उत्तरकाशी, हर्षिल, धराली में भारी तबाही मचाई थी।
गंगोत्री हाईवे को नुकसान
धराली में आई बाढ़ से गंगोत्री हाईवे का एक बड़ा हिस्सा ध्वस्त हो गया है, जिससे राहत कार्य में बड़ी बाधा आ रही है। DM और SP तक को घटनास्थल तक सड़क मार्ग से पहुंचने में कठिनाई हो रही है।
उत्तरकाशी का यह हादसा एक बार फिर से प्रकृति की चेतावनी है। 1835 से लेकर 2025 तक, खीरगंगा का कहर समय-समय पर सामने आता रहा है, लेकिन हमने सीख नहीं ली। अब समय है कि सतर्कता और संवेदनशील विकास नीति अपनाई जाए, ताकि ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके।