द लोकतंत्र: दिल्ली की राउज़ एवेन्यू कोर्ट में बहुचर्चित लैंड फॉर जॉब केस (Land for Job Case) की सुनवाई पूरी हो चुकी है। पूर्व रेल मंत्री और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, उनके बेटे बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव समेत अन्य आरोपियों पर आरोप तय करने को लेकर अदालत 13 अक्टूबर को फैसला सुनाएगी।
सीबीआई के विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने की अदालत ने दोनों पक्षों को अपनी-अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने का आदेश दिया था। सुनवाई के दौरान सीबीआई ने जोर देकर कहा कि इस मामले में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है।
सीबीआई का आरोप – गिफ्ट और जमीन के बदले नौकरी
सीबीआई ने अदालत को बताया कि तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के दबाव में ऐसे लोगों को ग्रुप-डी की नौकरियां दी गईं जो अपना नाम तक नहीं लिख सकते थे। एजेंसी का कहना है कि भर्ती की प्रक्रिया में महीनों लगते हैं, लेकिन इन नियुक्तियों को बिना परीक्षा के, एक ही दिन में मंजूरी दी गई।
सीबीआई ने यह भी दलील दी कि गरीब और जरूरतमंद लोग तत्कालीन मुख्यमंत्री और रेल मंत्री को गिफ्ट क्यों देंगे? यह साफ तौर पर भ्रष्टाचार का मामला है। एजेंसी ने कहा कि जमीन की खरीद-फरोख्त में अधिकतर लेन-देन नकद में हुआ और कुछ ही मामलों में सेल डीड दर्ज की गई।
तेजस्वी यादव के नाम जमीन का ट्रांसफर
सुनवाई के दौरान सीबीआई ने अदालत को एक विस्तृत चार्ट सौंपा। इसमें उन जमीनों का विवरण है जो लालू परिवार के नाम या उनके द्वारा नियंत्रित कंपनियों को ट्रांसफर की गईं। एजेंसी का कहना है कि 85 हजार रुपये की बाजार कीमत वाली जमीन केवल 50 हजार रुपये में बेची गई।
इन जमीनों का एक बड़ा हिस्सा पटना के गरीब परिवारों से आया। सीबीआई का आरोप है कि नौकरी पाने वाले उम्मीदवार या उनके परिजनों ने अपनी जमीनें यादव परिवार से जुड़ी कंपनियों को दीं। बाद में इन्हीं कंपनियों ने जमीनों का हस्तांतरण तेजस्वी यादव सहित परिवार के सदस्यों के नाम पर किया।
फर्जी दस्तावेज और स्कूलों का इस्तेमाल
सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक डीपी सिंह ने दलील दी कि 2004 से 2009 के बीच लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री रहते हुए जिन उम्मीदवारों को नौकरी मिली, वे सभी गरीब तबके से थे। उनके शैक्षणिक दस्तावेज फर्जी स्कूलों से जारी किए गए थे, जिन्हें खास इसी मकसद से खोला गया था।
अगली सुनवाई में फैसला
अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि अब फैसला 13 अक्टूबर को सुनाया जाएगा। इस बीच, सीबीआई ने यह भी दोहराया कि यह मामला केवल भ्रष्टाचार नहीं बल्कि सरकारी नियुक्तियों की पूरी प्रक्रिया को कमजोर करने का उदाहरण है।