द लोकतंत्र: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मंगलवार, 5 अगस्त 2025 को 79 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे लंबे समय से किडनी की बीमारी से पीड़ित थे और दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। अस्पताल सूत्रों के अनुसार, उन्होंने दोपहर करीब 1 बजे अंतिम सांस ली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर दुख जताते हुए कहा, “सत्यपाल मलिक जी के निधन से दुखी हूं। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं। ॐ शांति।”
किसान आंदोलन में खुला समर्थन
सत्यपाल मलिक उस समय सुर्खियों में आए जब उन्होंने तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया। उस समय वे केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर होकर बोले और आंदोलनकारी किसानों की मांगों को जायज बताया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह भी कहा था कि सरकार को आंदोलन के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए।
2023 में महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न मामले में भी वे खुलकर सामने आए और धरना स्थल पहुंचकर समर्थन जताया।
भ्रष्टाचार के आरोप और CBI चार्जशीट
मई 2024 में CBI ने सत्यपाल मलिक के खिलाफ ₹2200 करोड़ के कथित भ्रष्टाचार मामले में चार्जशीट दाखिल की थी। यह मामला जम्मू-कश्मीर के किरू हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट से जुड़ा था, जहां टेंडर प्रक्रिया में अनियमितताओं के आरोप लगे। इससे उनका नाम एक बार फिर राष्ट्रीय बहस का विषय बन गया।
राजनीतिक सफर और विचारधारा
सत्यपाल मलिक का राजनीतिक जीवन काफी विविध रहा। उन्होंने कांग्रेस, जनता दल, लोकदल और अंततः भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामा। उनकी छवि एक किसान हितैषी नेता के रूप में बनी रही। वे चौधरी चरण सिंह को अपना आदर्श मानते थे और खुद को लोहियावादी विचारधारा का समर्थक बताते थे।
सत्यपाल मलिक की भूमिका राज्यपाल के रूप में
वे बिहार, गोवा, जम्मू-कश्मीर और मेघालय जैसे राज्यों में राज्यपाल के रूप में कार्यरत रहे। जम्मू-कश्मीर में उनके कार्यकाल के दौरान ही अनुच्छेद 370 हटाया गया था। इसके अलावा वे शिक्षा और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी सक्रिय रूप से अपनी राय रखते थे।
सत्यपाल मलिक का निधन न केवल एक राजनीतिक व्यक्तित्व का अंत है, बल्कि किसान अधिकारों और लोकहित में बेबाक बोलने वाली एक आवाज की भी विदाई है। उनके जीवन और विचारधारा ने उन्हें एक अलग पहचान दी जो आने वाले वर्षों तक याद की जाएगी।