द लोकतंत्र: उत्तराखंड इस साल पिछले चार वर्षों का सबसे खराब मानसून झेल रहा है। 1 जून से 5 अगस्त 2025 के बीच 66 दिनों में से 43 दिन अति-मौसम (Extreme Weather) जैसे भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन वाले रहे। यह आंकड़ा डाउन टू अर्थ और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के विश्लेषण पर आधारित है।
2025 में मानसून के अब तक के 65% दिन Extreme Weather रहे, जबकि 2022 में यह 33%, 2023 में 47% और 2024 में 59% था। 5 अगस्त तक का रिकॉर्ड बताता है कि इस साल की स्थिति 2022 के पूरे मानसून (44 दिन) के बराबर हो चुकी है। अगर यही रफ्तार रही, तो सीजन के अंत तक यह आंकड़ा 83–86 दिन तक पहुंच सकता है।
बढ़ते खतरे और नुकसान:
1 जून से 5 अगस्त 2025 के बीच मौसम से जुड़ी आपदाओं में कम से कम 48 लोगों की मौत हो चुकी है। 5 अगस्त को उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में आई बाढ़ में 4 लोगों की मौत और 100 से ज्यादा लोग लापता हुए। उत्तराखंड सरकार ने इसे क्लाउडबर्स्ट बताया, लेकिन भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार यह तकनीकी रूप से क्लाउडबर्स्ट नहीं था, बल्कि कई घंटों तक हुई भारी बारिश थी।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, 5–6 अगस्त के बीच उत्तरकाशी में औसत से 421% ज्यादा बारिश हुई। सात घंटे में 100 मिमी से अधिक और कुछ स्थानों पर 400 मिमी बारिश दर्ज हुई, जो लंदन के सालाना औसत का दो-तिहाई है।
जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप:
IMD का कहना है कि 2024 का मानसून उत्तराखंड में 1901 के बाद का सबसे गर्म था, जिसमें औसत तापमान सामान्य से 1.5°C अधिक रहा। अधिक गर्म हवा ज्यादा नमी सोखती है, जिससे बारिश ज्यादा तेज और खतरनाक हो जाती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ तैयारी की कमी और बेतरतीब निर्माण भी खतरे को बढ़ा रहे हैं। सड़क निर्माण, जंगल कटाई और जल निकासी व्यवस्था की अनदेखी ने पहाड़ी इलाकों की संवेदनशीलता और बढ़ा दी है।
सेना का रेस्क्यू ऑपरेशन:
भारतीय सेना और आपदा प्रबंधन टीमें उत्तरकाशी में राहत कार्य में जुटी हैं। हेलिकॉप्टर और जमीनी बचाव दल प्रभावित इलाकों में पहुंच रहे हैं, लेकिन लगातार बारिश और सड़कों के कट जाने से काम कठिन हो रहा है।
आगे क्या करना होगा?
वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि हमें तुरंत कदम उठाने होंगे, बेहतर मौसम निगरानी, जल्दी चेतावनी तंत्र, बेतरतीब निर्माण पर रोक, जंगल संरक्षण और जल प्रबंधन को प्राथमिकता देना जरूरी है।
उत्तराखंड की मौजूदा स्थिति पूरे हिमालयी क्षेत्र के लिए चेतावनी है, जहां पिछले तीन वर्षों में 70% मानसून दिन अति-मौसम के रहे हैं।