द लोकतंत्र / उमा पाठक : अमीर बनने और खूब सारा पैसा कमाने की चाहत किसकी नहीं होती। हर कोई चाहता है कि उसके अकाउंट में इतने रुपये हो कि उसकी कोई भी ख्वाहिश बाक़ी न रह जाये। ख़्वाहिशों के बंधन में फँसा इंसान पैसे कमाने की अंधी दौड़ में दौड़ा जा रहा है लेकिन क्रेडिट सुइस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट की बात करें तो महज़ कुछ रुपयों में ही आप दुनिया के 50 फीसदी अमीरों की सूची में शामिल हो जाएँगे। रुपये भी इतने ज़्यादा नहीं है कि आपको उसके लिए दिन रात एक करनी हो। भारत में इतने रुपयों में शादियाँ भी नहीं हो पाती जिसमें आप दुनिया भर के 50 फ़ीसदी अमीर लोगों की सूची में जगह बना लेंगे।
अमीरों की सूची में शामिल होने के लिए आख़िर कितने रुपये चाहिए
आपको जानकर हैरानी होगी कि जितने रुपयों में आप ढंग से एक शादी नहीं कर पायेंगे उतने रुपयों में आप दुनिया के 50 फ़ीसद अमीरों की लिस्ट का हिस्सा हो जाएँगे। साल 2018 में क्रेडिट सुइस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट आई थी जिसके अनुसार अगर आपके बैंक खाते में 4210 डॉलर हैं यानी लगभग 3 लाख 52 हजार रुपये हैं तो आप दुनिया की आधी आबादी से ज्यादा अमीर हैं। वहीं, इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अगर आपके पास भारतीय रुपयों में लगभग 78 लाख रुपये हैं तो आप दुनिया के उन टॉप 10 फीसदी लोगों में शामिल हैं जो धरती के 90 फीसदी आबादी से अमीर है।
वहीं, अगर आप दुनिया के टॉप 1 फीसदी अमीरों की लिस्ट में आना चाहते हैं तो आपको अपने अकाउंट में महज़ 8,71,320 डॉलर रखने होंगे। भारतीय रुपयों में ये करीब 7 करोड़ 29 लाख रुपये होते हैं। यानी अगर आपको दुनिया की एक फीसदी अमीर आबादी में शामिल होना है तो आपको मेहनत करके बस करोड़पति होना होगा। यानी अंबानी नहीं भी बने तब भी छोटा मोटा करोड़पति बनकर आप दुनिया के उन एक फ़ीसदी लोगों में शामिल हो सकते हैं जो बेहद अमीर हैं और लग्ज़ीरियस लाइफ जीते हैं।
हैरान हो गए न आप। यह रिपोर्ट न सिर्फ़ चौंकाती है बल्कि बेहद डराती भी है। क्योंकि यह रिपोर्ट यह बताती है कि दुनिया में किस कदर आर्थिक असामनता है कि महज़ कुछ फीसद लोगों के पास दुनिया की 85 फीसदी से ज़्यादा सम्पति है। यह रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक आर्थिक असमानता कितनी बड़ी समस्या बन गई है। इससे स्वास्थ्य, शिक्षा और कई अन्य आयामों में जीवन जीने की समस्या और भी जटिल हो गई है।
वैश्विक आर्थिक असमानता एक बहुत ही गंभीर समस्या
बता दें, वैश्विक आर्थिक असमानता एक बहुत ही गंभीर समस्या है। और स्पष्ट है कि यह स्थिति दुनियाभर में मौजूद है। इसका मतलब है कि दुनिया के संसाधन, पैसे और मौके कुछ खास लोगों या समूहों के पास ज्यादा हैं, जबकि बाकी लोगों को बहुत कम मिलता है। क्रेडिट सुईस की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की संपत्ति का एक बहुत बड़ा हिस्सा कुछ ही अमीर लोगों के पास है। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की कुल संपत्ति का लगभग आधा हिस्सा सबसे अमीर 1% लोगों के पास है। वहीं, सबसे गरीब 50% लोगों के पास केवल 1% से भी कम संपत्ति है।
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इस असमानता का मतलब यह है कि अमीर लोग और भी अमीर हो रहे हैं, जबकि गरीब लोग और गरीब हो रहे हैं। इसका असर न केवल लोगों के जीवन स्तर पर पड़ता है, बल्कि समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसरों पर भी पड़ता है। गरीब लोग अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं, जिससे उनका जीवन कठिन हो जाता है।