द लोकतंत्र : 2 अक्टूबर को सिनेमाघरों में दो बड़ी फिल्मों की टक्कर होने जा रही है। एक ओर वरुण धवन और जाह्नवी कपूर की रोमांटिक कॉमेडी ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ है, वहीं दूसरी तरफ ऋषभ शेट्टी की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘कांतारा: चैप्टर 1’ रिलीज होने जा रही है। इस बॉक्स ऑफिस क्लैश से पहले ही दोनों फिल्मों के मेकर्स अपने-अपने डिस्ट्रीब्यूटर्स के जरिए थिएटर्स में ज्यादा से ज्यादा स्क्रीन्स सुरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।
धर्मा प्रोडक्शंस की डिमांड
वरुण धवन और जाह्नवी कपूर अपनी फिल्म का जोर-शोर से प्रमोशन कर रहे हैं। इसी बीच रिपोर्ट्स के मुताबिक, धर्मा प्रोडक्शंस ने देशभर के एग्जिबिटर्स को अपनी स्क्रीनिंग डिमांड्स भेज दी हैं।
2 स्क्रीन वाले थिएटर्स में 50% शो (कम से कम 1 ऑडिटोरियम)।
3 स्क्रीन वाले थिएटर्स में 33% शो।
4 स्क्रीन वाले मल्टीप्लेक्स में 25% शो (कम से कम 1 स्क्रीन फुल डे शो के साथ)।
5 या उससे ज्यादा स्क्रीन्स वाले थिएटर्स में कम से कम 2 स्क्रीन।
धर्मा का फोकस यह है कि फिल्म को हर मल्टीप्लेक्स और थिएटर में उचित प्रतिनिधित्व मिले, ताकि बड़ी फिल्म से टक्कर में भी दर्शक उनकी फिल्म को चुन सकें।
अनिल थडानी का मास्टर प्लान
दूसरी ओर, ‘कांतारा: चैप्टर 1’ को डिस्ट्रीब्यूट कर रही है अनिल थडानी की कंपनी AA फिल्म्स। उनका प्लान काफी आक्रामक है।
सिंगल स्क्रीन, डबल स्क्रीन और ट्रिपल स्क्रीन थिएटर्स में 100% शो की मांग।
4 स्क्रीन वाले थिएटर्स में 21 शो।
5 स्क्रीन वाले मल्टीप्लेक्स में 27 शो।
6 स्क्रीन में 30 शो।
7 स्क्रीन में 36 शो।
8 स्क्रीन में 42 शो।
9 स्क्रीन में 48 शो।
10 स्क्रीन वाले मल्टीप्लेक्स में 54 शो।
इस रणनीति के चलते छोटे मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन थिएटर्स में ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ को जगह मिलना मुश्किल हो सकता है।
बॉक्स ऑफिस पर असर
ट्रेड एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ऋषभ शेट्टी की ‘कांतारा’ ब्रांड पहले से ही दर्शकों के बीच मजबूत पकड़ बना चुकी है। वहीं वरुण धवन और जाह्नवी कपूर की फिल्म रोमांटिक-फैमिली ऑडियंस को टारगेट कर रही है। ऐसे में शुरुआती दिनों में स्क्रीन्स को लेकर संघर्ष जरूर होगा, लेकिन लंबे समय में ऑडियंस का फैसला ही तय करेगा कि कौन सी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर टिकती है।
2 अक्टूबर को होने वाली यह क्लैश हिंदी और कन्नड़ सिनेमा के लिए बेहद अहम साबित हो सकती है। एक तरफ स्टार पावर और ग्लैमरस प्रेजेंटेशन है, तो दूसरी ओर कंटेंट-ड्रिवन सिनेमा की ताकत। स्क्रीन्स की यह जंग साफ करती है कि असली मुकाबला सिर्फ बड़े पर्दे पर ही नहीं, बल्कि पर्दे के पीछे भी उतना ही तीखा होने वाला है।