द लोकतंत्र: पितृपक्ष का समय आते ही गया धाम का महत्व और बढ़ जाता है। यह पवित्र स्थान पूर्वजों को श्राद्ध और पिंडदान अर्पित करने का सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है। मान्यता है कि यहां किया गया पिंडदान पितरों की आत्मा को मोक्ष प्रदान करता है। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि गया धाम में माता सीता से जुड़ा एक अनोखा प्रसंग घटित हुआ था, जो पितृपक्ष के महत्व को गहराई से समझाता है।
गया धाम में सीता का पिंडदान
कथा के अनुसार, भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता पिताश्री दशरथ का पिंडदान करने गया धाम पहुंचे। राम और लक्ष्मण सामग्री लेने बाहर गए, तो देर होने पर माता सीता ने स्वयं पिंडदान संपन्न करने का निश्चय किया। उन्होंने गाय, फल्गु नदी, केतकी फूल और वटवृक्ष को साक्षी बनाकर पिंडदान पूरा किया।
गवाहों का परीक्षण और श्राप
जब राम और लक्ष्मण लौटे, सीता ने गवाहों से सच्चाई बताने को कहा। लेकिन वटवृक्ष को छोड़कर गाय, फल्गु नदी और केतकी फूल ने असत्य कहा। इस विश्वासघात से सीता क्रोधित हो गईं और उन्होंने श्राप दिया, गाय को जूठन खाने का, फल्गु नदी को सूखी रहने का और केतकी फूल को भगवान शिव की पूजा से वंचित कर दिया। वटवृक्ष, जिसने सच कहा, उसे पितृपक्ष में पूजनीय बना दिया गया।
पितृपक्ष में गया धाम का महत्व
गया धाम में हर साल पितृपक्ष के दौरान लाखों श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करते हैं। 2025 में पितृपक्ष 13 सितंबर से 27 सितंबर तक मनाया जाएगा। इस अवधि में फल्गु नदी के तट, विष्णुपद मंदिर और वटवृक्ष के पास श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ रहती है।
कथा का धार्मिक संदेश
सीता और गया धाम से जुड़ी यह कथा केवल श्राप की कहानी नहीं, बल्कि धर्म, सत्य और कर्तव्य पालन की मिसाल भी है। यह प्रसंग बताता है कि सत्य को छिपाने के दुष्परिणाम कितने गंभीर हो सकते हैं और धर्म की रक्षा के लिए दृढ़ता आवश्यक है। पितृपक्ष में यह कथा हमें अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और सत्य के प्रति समर्पण की प्रेरणा देती है।
गया धाम की यह अनूठी परंपरा आज भी सनातन संस्कृति की गहराई और पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।