द लोकतंत्र : हिंदू धर्म में करवा चौथ का व्रत प्रेम, आस्था और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस साल करवा चौथ 10 अक्टूबर 2025, शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं।
महिलाएं पूरे दिन बिना भोजन और जल ग्रहण किए शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं। करवा माता की पूजा के बाद महिलाएं अपने पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलती हैं, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस जल का थोड़ा भाग अपने बच्चों को पिलाना शुभ माना जाता है।
धार्मिक मान्यता: बच्चों की अकाल मृत्यु से रक्षा
कहा जाता है कि करवा चौथ के दिन व्रत पूरा करने के बाद मां के जूठे जल को बच्चों को पिलाने से उनकी अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। इस परंपरा के अनुसार जल तांबे के बर्तन में होना चाहिए, क्योंकि तांबा शुभता और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। हालांकि इस पर कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, लेकिन यह परंपरा बच्चों की दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना से जुड़ी हुई है।
भगवान गणेश से जुड़ी कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान गणेश ने माताओं को यह विशेष वरदान दिया था कि करवा चौथ के दिन जब वे पति के हाथों से जल ग्रहण करें, तो वह जल दिव्यता और पवित्रता से युक्त होता है।
गणेश जी ने कहा था कि यदि वह जल बच्चों को पिलाया जाए, तो उन्हें किसी भी प्रकार की अकाल मृत्यु, शनि के दुष्प्रभाव या दुर्भाग्य का सामना नहीं करना पड़ेगा।
परिवार की समृद्धि का प्रतीक
करवा चौथ केवल पति की लंबी उम्र का व्रत नहीं, बल्कि पूरे परिवार की सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक भी है। मां जब अपने बच्चों को जूठा जल पिलाती है, तो यह उनके प्रति आशीर्वाद और सुरक्षा का प्रतीक बन जाता है। यह परंपरा मातृत्व और प्रेम का भाव दर्शाती है।
करवा चौथ व्रत की भावना
करवा चौथ का व्रत स्त्री के धैर्य, निष्ठा और प्रेम का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह पर्व परिवार के बंधन को और मजबूत करता है और आस्था एवं विश्वास का संदेश देता है।

