द लोकतंत्र: पितृ पक्ष हिन्दू धर्म का वह पवित्र समय है, जब लोग अपने पितरों को याद कर श्राद्ध और तर्पण करते हैं। इस अवधि में एक विशेष अनुष्ठान पंचबलि श्राद्ध (Panchbali Shraddha) कहलाता है, जिसे किए बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि पंचबलि श्राद्ध से पितरों की आत्मा तृप्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
पंचबलि श्राद्ध का उद्देश्य केवल पितरों को ही नहीं, बल्कि देवताओं, जीव-जंतुओं और समष्टि कल्याण को भी संतुष्ट करना है। इस कर्म के अंतर्गत पांच स्थानों पर भोजन अर्पित किया जाता है, इसे ही ‘पंचबलि’ कहा जाता है।
पंचबलि श्राद्ध में पांच अर्पण
गौ बलि (Cow Offering): पश्चिम दिशा में गाय के लिए भोजन रखा जाता है। गाय को देवताओं का वास माना जाता है।
श्वान बलि (Dog Offering): कुत्ते के लिए अन्न अर्पित किया जाता है। श्वान को भगवान भैरव का वाहन कहा जाता है।
काक बलि (Crow Offering): कौआ पितरों का दूत माना जाता है, इसलिए इसे श्राद्ध का भोजन दिया जाता है।
देवाधि बलि (Brahmin/Deity Offering): ब्राह्मण या देवताओं को भोजन कराकर तृप्त किया जाता है। ब्राह्मण पितरों और देवताओं का प्रतिनिधि माने जाते हैं।
पिपीलिकादि बलि (Ant/Insects Offering): चींटियों और सूक्ष्म जीवों के लिए अन्न रखा जाता है। इन्हें पितरों का स्वरूप माना गया है।
मान्यता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज विभिन्न रूपों जैसे कौआ, गाय, कुत्ता या चींटी के रूप में आकर अपने वंशजों द्वारा अर्पित भोजन स्वीकार करते हैं। इसलिए श्राद्ध के समय इन जीवों के लिए अन्न अवश्य निकाला जाता है।
धार्मिक लाभ और महत्व
पंचबलि श्राद्ध से पितरों के साथ-साथ सभी प्राणियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इससे घर में शांति, सुख और समृद्धि बनी रहती है तथा ग्रह-दोष भी कम होते हैं। यह कर्म पर्यावरण और जीव-जगत के प्रति सम्मान की भावना को भी दर्शाता है।
पितृ पक्ष के दौरान पंचबलि श्राद्ध करते समय शुद्धता और श्रद्धा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद अन्य अर्पण पूरे करें। इस प्रकार, यह अनुष्ठान हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने और समस्त प्राणियों के कल्याण की भावना का अद्भुत उदाहरण है।