द लोकतंत्र: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत (Shukra Pradosh Vrat) का विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है और हर माह दो बार पड़ता है, पहली बार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को और दूसरी बार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को। साल 2025 में आश्विन मास के कृष्ण पक्ष का दूसरा प्रदोष व्रत शुक्रवार को पड़ेगा, इसलिए इसे “शुक्र प्रदोष व्रत” कहा जा रहा है।
तिथि और समय
ज्योतिष पंचांग के अनुसार आश्विन माह की कृष्ण त्रयोदशी तिथि 18 सितंबर 2025 (गुरुवार) की रात 11:24 बजे शुरू होगी और 19 सितंबर 2025 (शुक्रवार) की रात 11:36 बजे समाप्त होगी। पूजा के लिए प्रदोष काल 19 सितंबर की शाम 6:21 बजे से रात 8:43 बजे तक रहेगा। यह समय भगवान शिव के पूजन और व्रत की विधि के लिए शुभ माना गया है।
पितृ पक्ष में महत्व
इस बार यह व्रत पितृ पक्ष के दौरान पड़ रहा है। मान्यता है कि जब प्रदोष व्रत पितृपक्ष में आता है, तब भगवान शिव के साथ पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। श्रद्धापूर्वक व्रत और पूजा करने से पितृदोष से मुक्ति और पूर्वजों की आत्मा की शांति मिलती है।
व्रत का आध्यात्मिक लाभ
शास्त्रों में कहा गया है कि शुक्र प्रदोष व्रत से दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि आती है। विवाहित दंपत्ति यदि एक साथ व्रत रखें तो पारिवारिक जीवन में सामंजस्य और खुशहाली बढ़ती है। अविवाहित युवाओं को भी मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त करने का आशीर्वाद मिलता है।
पूजन विधि
- व्रत के दिन सुबह स्नान कर संकल्प लें।
- पूजन स्थल को साफ कर शिवलिंग स्थापित करें।
- शिवलिंग को गंगाजल और पंचामृत से स्नान कराएं।
- चंदन, बेलपत्र, धतूरा, सफेद फूल अर्पित करें।
- शिव-पार्वती को फल और सफेद मिठाई का भोग लगाएं।
- “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
- प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें और आरती कर पूजा पूर्ण करें।
इस प्रकार, पितृ पक्ष में पड़ने वाला Shukra Pradosh Vrat केवल भगवान शिव की कृपा पाने का ही नहीं, बल्कि पितरों का आशीर्वाद पाने का भी श्रेष्ठ अवसर है। श्रद्धा और नियम से किया गया यह व्रत जीवन से नकारात्मकता हटाकर सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।