Advertisement Carousel
Spiritual

Dhanteras 2025: उज्जैन में कुबेर देवता का अनूठा मंदिर, जहां श्रीकृष्ण ने स्थापित की थी प्रतिमा

the loktantra

द लोकतंत्र : दीपावली पर्व से दो दिन पहले मनाए जाने वाले धनतेरस (Dhanteras) पर्व पर धन के देवता कुबेर भगवान की पूजा का विशेष महत्व होता है। इसी आस्था और विश्वास के चलते इस वर्ष भी मध्य प्रदेश के धार्मिक शहर उज्जैन स्थित एक प्राचीन कुबेर मंदिर में धनतेरस से ठीक एक दिन पहले, शुक्रवार से ही देश भर से श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया है। इस मंदिर से जुड़ी एक अनूठी मान्यता है कि यहां विराजित कुबेर जी की प्राचीन प्रतिमा की स्थापना स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने की थी।

संदीपनी आश्रम में विराजित हैं कुबेर देव

यह अनूठा मंदिर उज्जैन में मंगलनाथ मार्ग पर स्थित महर्षि संदीपनी के आश्रम परिसर में स्थित है, वही आश्रम जहां भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने अपनी शिक्षा ग्रहण की थी। आश्रम परिसर में श्रीकृष्ण बलराम मंदिर के पास ही 84 महादेव में से 40वें नंबर के कुंडेश्वर महादेव का मंदिर है। इसी मंदिर के गर्भ गृह में कुबेर देवता की यह प्राचीन और अद्भुत प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर की वास्तुकला भी विशेष है, क्योंकि इसकी छत श्री यंत्र की आकृति की बनी हुई है, जो धन और समृद्धि को आकर्षित करने का प्रतीक है।

इत्र लगाने से आती है घर में समृद्धि

इस मंदिर की एक अनोखी स्थानीय मान्यता है जो भक्तों को दूर-दूर से खींच लाती है। मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस के विशेष अवसर पर यहां कुबेर जी की पूजा करने और उनके पेट पर इत्र लगाने से भक्त के घर-परिवार में समृद्धि और धन लाभ होता है। यही कारण है कि देश भर से लोग यहां आकर दर्शन करते हैं और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। शनिवार को धनतेरस के विशेष अवसर पर यहां दो बार विशेष आरती का आयोजन किया जाएगा, जिसमें सूखे मेवे, इत्र, मिष्ठान और फल का भोग लगाया जाएगा। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में कुबेर देव के मात्र दर्शन से ही धन की प्राप्ति होती है। मंदिर के द्वार पर खड़ी नंदी की अद्भुत प्रतिमा भी भक्तों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

श्रीकृष्ण क्यों लाए थे कुबेर को?

मंदिर के पुजारी शिवांश व्यास ने इस प्राचीन प्रतिमा से जुड़ी एक रोचक पौराणिक कथा बताई। उन्होंने कहा कि जब भगवान श्रीकृष्ण महर्षि सान्दीपनि के आश्रम से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद द्वारका जाने लगे, तब गुरु दक्षिणा देने के लिए कुबेर देव धन लेकर आए थे।

लेकिन गुरु-माता ने श्रीकृष्ण से कहा कि उनके पुत्र का शंखासुर राक्षस ने हरण कर लिया है। उन्होंने श्रीकृष्ण से धन के बजाय अपने पुत्र को वापस लाने की गुरु दक्षिणा मांगी। श्रीकृष्ण ने गुरु पुत्र को राक्षस से मुक्त कराकर गुरु-माता को सौंप दिया और फिर स्वयं द्वारका के लिए प्रस्थान कर गए। इस घटना के बाद कुबेर देव वहीं आश्रम में बैठे रह गए। यही कारण है कि यहां कुबेर की प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा (आसन) में है, जो भक्तों के लिए एक अद्वितीय दर्शन अनुभव है। धनतेरस के मौके पर यह मंदिर धन और आस्था के एक अद्भुत केंद्र के रूप में भक्तों के लिए खुला रहता है।

Uma Pathak

Uma Pathak

About Author

उमा पाठक ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से मास कम्युनिकेशन में स्नातक और बीएचयू से हिन्दी पत्रकारिता में परास्नातक किया है। पाँच वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाली उमा ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अपनी सेवाएँ दी हैं। उमा पत्रकारिता में गहराई और निष्पक्षता के लिए जानी जाती हैं।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like

साधना के चार महीने
Spiritual

Chaturmas 2025: चार महीने की साधना, संयम और सात्विक जीवन का शुभ आरंभ

द लोकतंत्र: चातुर्मास 2025 की शुरुआत 6 जुलाई से हो चुकी है, और यह 1 नवंबर 2025 तक चलेगा। यह चार
SUN SET
Spiritual

संध्याकाल में न करें इन चीजों का लेन-देन, वरना लौट सकती हैं मां लक्ष्मी

द लोकतंत्र : हिंदू धर्म में संध्याकाल यानी शाम का समय देवी लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है। यह वक्त