द लोकतंत्र: हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में पूजा जाता है, जिन्होंने समय-समय पर पृथ्वी पर अवतार लेकर अधर्म का विनाश किया। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान विष्णु जैसे दिव्य देवता को भी कभी देवी शक्ति यानी माता पार्वती से श्राप मिला था?
यह पौराणिक कथा मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय लोककथाओं में प्रसिद्ध है और इसका संबंध भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह प्रसंग से है। इस कथा का एक रूप शक्ति पीठ और सती प्रसंग से भी जुड़ता है, लेकिन दोनों कथाओं में यह समानता है कि विष्णु को पत्नी वियोग का श्राप माता पार्वती के क्रोध से प्राप्त हुआ।
शिव विवाह का प्रसंग
जब माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की, तो अंततः शिवजी उनकी भक्ति से प्रसन्न हो गए और विवाह को सहमत हुए। इस आयोजन में भगवान विष्णु को वर पक्ष का प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया।
जैसे ही भगवान शिव अपनी बारात लेकर माता पार्वती के घर पहुंचे, उनका भयानक रूप देखकर माता पार्वती की माता मैना देवी डर गईं। उनके साथ भूत-प्रेत, गंधर्व और यक्षों की विचित्र टोली थी, जो किसी राजपरिवार के लिए अस्वाभाविक लगती थी।
विष्णु की सलाह और पार्वती का क्रोध
स्थिति को देखकर भगवान विष्णु ने विवाह को रोकने या स्थगित करने का सुझाव दिया। उन्होंने सोचा कि शिव का रूप और जीवनशैली राजकुमारी पार्वती के अनुकूल नहीं है। यह सुनकर माता पार्वती अत्यंत दुखी हुईं और उन्होंने विष्णु जी को श्राप दे दिया, “जैसे तुमने मेरे प्रेम और तप का अपमान किया है, वैसे ही तुम्हें भी अपने अगले जन्म में पत्नी वियोग का कष्ट झेलना पड़ेगा।”
श्राप का प्रभाव: राम और सीता वियोग
यह श्राप त्रेता युग में फलित हुआ, जब विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया और सीता उनकी पत्नी बनीं। रावण द्वारा सीता का अपहरण और फिर उनका वन-वन भटककर तलाशना यह सब इसी श्राप का फल माना गया है।
यह कथा न केवल भगवानों के आपसी संबंधों और कर्मों का चित्रण करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि श्रद्धा, प्रेम और नारी सम्मान को कितना महत्व दिया गया है। पौराणिक कथाएं प्रतीकात्मक रूप से हमें जीवन के गूढ़ संदेश देती हैं।