द लोकतंत्र: हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या को पिठोरी अमावस्या (Pithori Amavasya 2025) कहा जाता है। इस तिथि का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बेहद खास है। इसे कुशग्रहणी अमावस्या और कुशोत्पाटनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
पितरों की शांति और आशीर्वाद
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और विशेष पूजा की जाती है। ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और पूरे वर्ष परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। मान्यता है कि विधिवत तर्पण और श्राद्ध से पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
संतानों की दीर्घायु के लिए व्रत
पिठोरी अमावस्या का एक और महत्व है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु, सुख-संपन्नता और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। महिलाएं आटे से देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाकर उनकी पूजा करती हैं और घर-परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं।
पिठोरी शब्द का अर्थ
‘पिठोरी’ शब्द का अर्थ है आटे से बनी मूर्तियां या चित्र। इस परंपरा के तहत महिलाएं घर पर आटे से देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाती हैं और विधिपूर्वक पूजन करती हैं। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
तिथि और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष पिठोरी अमावस्या 22 अगस्त 2025 (शुक्रवार) को दोपहर 11:57 बजे से शुरू होकर 23 अगस्त 2025 (शनिवार) सुबह 11:37 बजे तक रहेगी। चूंकि अमावस्या तिथि पर मध्यकाल का विशेष महत्व है, इसलिए पिठोरी अमावस्या का व्रत और श्राद्ध 22 अगस्त को ही मनाया जाएगा।
पूजन और श्राद्ध विधि
इस दिन प्रातःकाल स्नान करके पितृ पूजन का संकल्प लें। किसी पवित्र स्थान पर बैठकर कुशा हाथ में लेकर पितरों का स्मरण करें और “ॐ पितृदेवाय नमः” या “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
तांबे/पीतल के पात्र में जल, तिल, चावल, पुष्प और कुशा डालें।
इसे हाथ से अर्पण करें और जल को दक्षिण दिशा में छोड़ते हुए पितरों का नाम लें।
पके हुए चावल, तिल और घी से पिंड बनाकर पितरों को अर्पित करें।
अंत में ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
पिठोरी अमावस्या न केवल पितरों की शांति और मोक्ष के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दिन माताओं के लिए भी खास है। इस अवसर पर व्रत-उपवास और तर्पण से पितृ प्रसन्न होते हैं और संतान पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।