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कोकिलावन धाम: शनिदेव का वो प्राचीन मंदिर जहां श्रीकृष्ण ने दिए थे ‘कोयल’ रूप में दर्शन, जानें मथुरा के इस अनोखे धाम का महत्व और पौराणिक कथा

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द लोकतंत्र : उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नंदगांव कोसी कलां में स्थित शनिदेव का कोकिलावन धाम मंदिर अपनी अद्भुत पौराणिक कथा और विशेष धार्मिक महत्व के कारण देशभर में प्रसिद्ध है। यह प्राचीन मंदिर घने जंगलों के बीच में स्थित है, यही वजह है कि इसका नाम कोकिलावन (कोयल का वन) पड़ा। शनिदेव के सबसे प्राचीन मंदिरों में शामिल इस धाम की परिक्रमा का विशेष महात्म्य है, जिसके पीछे की कहानी स्वयं भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है।

श्रीकृष्ण ने कोयल रूप में दिए दर्शन

कोकिलावन धाम में शनि देव की एक विशाल मूर्ति भी स्थापित है, जो शनिदेव की सबसे बड़ी मूर्तियों में शामिल है। इस मंदिर को विशेष दर्जा प्राप्त है क्योंकि यह सीधे द्वापरयुग की एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है:

  • शनिदेव की तपस्या: पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापरयुग में शनिदेव ने अपने इष्ट देव भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर कड़ी तपस्या की थी।
  • कोयल रूप में दर्शन: उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने शनिदेव को उनके सामने कोयल रूप में दर्शन दिए थे, जिसके बाद यह स्थान कोकिलावन धाम कहलाया।

कोकिलावन धाम की परिक्रमा का महत्व

श्रीकृष्ण ने शनिदेव से यह भी कहा था कि, “नंदगांव के समीप कोकिला वन उनका वन है और जो भी व्यक्ति शनि देव की पूजा के बाद इस वन की परिक्रमा लगाएगा, उसे मेरी और शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होगी।” यही कारण है कि कोकिला धाम मंदिर की परिक्रमा को हिंदू धर्म में एक विशेष दर्जा प्राप्त है।

शनिवार के दिन कोकिला धाम मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। यहां आने के बाद भक्त शनि की पूजा-अर्चना के बाद उनके बीज मंत्रों का जाप करते हैं। इसके अलावा जरूरतमंद लोगों को श्रद्धापूर्वक दान दिया जाता है, जिससे शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के कष्ट कम होते हैं।

मां यशोदा और शनिदेव की तपस्या

इस मंदिर से जुड़ी एक और प्रचलित पौराणिक कथा है, जो बताती है कि शनिदेव ने यहाँ तपस्या क्यों की थी:

  • दर्शन से वंचित: जब श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ था, तब सभी देवी-देवता उनके दर्शन के लिए गोकुल आए थे। इनमें शनिदेव भी शामिल थे। लेकिन मां यशोदा ने शनिदेव को श्रीकृष्ण के दर्शन करने नहीं दिए। उन्हें भय था कि, शनि देव की वक्री दृष्टि कहीं बालकृष्ण पर न पड़ जाए और उन्हें कोई कष्ट न हो।
  • तपस्या: मां यशोदा के मना करने पर शनिदेव इस बात से काफी निराश हुए और नंदगांव के पास ही एक जंगल में जाकर कड़ी तपस्या करने लगे थे।
  • आशीर्वाद: श्रीकृष्ण उनके तप से खुश हुए और उन्हें कोयल रूप में दर्शन देकर आशीर्वाद दिया कि वह सदैव उसी स्थान पर वास करेंगे और भक्तों का कल्याण करेंगे। श्रीकृष्ण की इस लीला के बाद इस जगह का नाम कोकिलावन धाम पड़ा।

मंदिर परिसर में अन्य मंदिर

कोकिला धाम मंदिर परिसर में शनि देव के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी बने हुए हैं:

  • श्री गोकुलेश्वर महादेव मंदिर
  • श्री गिरिराज मंदिर
  • श्री बाबा बनखंडी मंदिर
  • श्रीदेव बिहारी मंदिर

इन मंदिरों के अलावा परिसर में दो प्राचीन सरोवर और एक गौशाला भी है, जो इस धाम की पवित्रता को बढ़ाते हैं।

Uma Pathak

Uma Pathak

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उमा पाठक ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से मास कम्युनिकेशन में स्नातक और बीएचयू से हिन्दी पत्रकारिता में परास्नातक किया है। पाँच वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाली उमा ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अपनी सेवाएँ दी हैं। उमा पत्रकारिता में गहराई और निष्पक्षता के लिए जानी जाती हैं।

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