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…काश यह खबर झूठी होती, काश कोई रास्ता होता जिससे हम तुम्हें वापस ला पाते ‘पार्थ’

...I wish this news was false, I wish there was a way we could bring you back Parth

द लोकतंत्र/ सुदीप्त मणि त्रिपाठी : कभी कभी दर्द इतना गहरा होता है कि शब्द खो जाते हैं। समझ नहीं आता कि अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त करें। पार्थ की मौत ने हमें ऐसे ही सदमे में डाल दिया है, जहां से निकलना नामुमकिन लग रहा है। ऐसा लगता है जैसे वक्त ने अचानक सब छीन लिया हो। हम खुद से नजर चुरा रहे हैं, क्योंकि ये हकीकत हमारी रूह को छलनी कर रही है। पार्थ शुक्ला के जाने की खबर बहुत गहरी चोट दे गई है कि मानो शब्द भी दर्द से तड़प रहे हों। काश, यह खबर झूठी होती। काश, वह हादसा न हुआ होता। काश, समय को पलटकर पार्थ को फिर से हमारी जिंदगी का हिस्सा बनाया जा सकता।

द लोकतंत्र पर पार्थ शुक्ला के निधन की ख़बर अपडेट करते हुए मेरे हाथ काँप रहे हैं। बहुत हिम्मत जुटाकर, शब्द शब्द जोड़कर मैं पार्थ के इस दुनिया और हम सबसे दूर चले जाने की जानकारी साझा कर रहा हूँ। दर्द का अम्बार इतना बड़ा है कि कलेजा कांप रहा है। दरअसल, द लोकतंत्र के संरक्षक और स्टेट हेड वरिष्ठ पत्रकार राबी शुक्ला के सुपुत्र पार्थ शुक्ला चार दिन पूर्व एक रोड एक्सीडेंट में गंभीर रूप से घायल हो गये थे। लखनऊ के मेदांता अस्पताल में क्रिटिकल केयर यूनिट में पार्थ अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे। लेकिन, रविवार सुबह 9:45 पर पार्थ ज़िंदगी से अपनी जंग हार गये।

समाज को पार्थ शुक्ला का शुक्रगुज़ार होना चाहिए

महामारी के सबसे कठिन दौर में, जब हर तरफ मौत की अनिश्चितता और भय का अंधकार छाया हुआ था, पार्थ एक उम्मीद की किरण बनकर उभरे। जहां लोग अपने घरों में सुरक्षित रहने की कोशिश कर रहे थे, वहीं पार्थ सड़कों पर, अस्पतालों में और जरूरतमंदों के दरवाजे पर मदद लेकर खड़े थे। वह हर उस इंसान के लिए आशा का प्रतीक थे, जो कोरोना महामारी के दौर में मृत्यु की अनिश्चितताओं के बीच अपने जीवन को लेकर संघर्ष कर रहा था। समाज को पार्थ शुक्ला का हमेशा शुक्रगुज़ार होना चाहिए। पार्थ का जाना केवल उनके परिवार और साथियों के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक ऐसी क्षति है, जिसे भर पाना असंभव है।

पार्थ के जाने का दुख इतना गहरा है कि हर कोई अपने आप में टूट चुका है। पार्थ की अनुपस्थिति एक गहरी चोट सरीखी है जो शायद ही कभी भर पाए। महामारी के अंधेरे दौर में, जब हर कोई अपने लिए संघर्ष कर रहा था, पार्थ ने दूसरों की जिंदगी बचाने को अपना मकसद बना लिया। उन्होंने न सिर्फ जरूरतमंदों की मदद की, बल्कि उन्हें जीने का हौसला भी दिया।

मुंबई की संस्था ‘खाना चाहिए फाउंडेशन’ ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, यह अत्यंत दुख के साथ सूचित किया जा रहा है कि हमारे सबसे साहसी और निस्वार्थ जमीनी योद्धाओं में से एक, पार्थ शुक्ला, आज सुबह एक दुखद हादसे के बाद हमें छोड़कर चले गए। महामारी के कठिन समय में पार्थ एक सच्चे नायक थे, जिन्होंने बिना किसी भय के अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर समाज की सेवा की।

देवरिया सांसद शशांक मणि त्रिपाठी व सदर विधायक शलभ मणि ने भी दी श्रद्धांजलि

देवरिया सांसद शशांक मणि त्रिपाठी ने फ़ेसबुक पोस्ट के माध्यम से पार्थ को याद करते हुए लिखा, जागृति संस्थान के पूर्व सदस्य और होनहार युवा साथी श्री पार्थ सारथी शुक्ला जी के अचानक निधन से मन व्यथित है। गोलोकवासी पार्थ सारथी की प्रतिमा को नमनकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। ईश्वर से प्रार्थना है कि इस दुख की घड़ी में परिवार को सहन शक्ति दें और पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें । ॐ शांति!

वहीं, सदर विधायक देवरिया शलभ मणि त्रिपाठी ने भी फ़ेसबुक पोस्ट के माध्यम से पार्थ को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, पारिवारिक साथी व देवरिया के वरिष्ठ पत्रकार श्री राबी शुक्ला जी के युवा पुत्र पार्थ शुक्ला का असामयिक निधन बेहद कष्टकारी है। ईश्वर पार्थ को अपने श्रीचरणों में स्थान दें एवं शोकाकुल परिजनों को यह आघात सहन करने की शक्ति प्रदान करें। ॐ शान्ति !!

हर किसी के चेहरे पर शोक और दर्द की लहर

पार्थ शुक्ला के असमय निधन पर वरिष्ठ पत्रकार राबी शुक्ला के घर पर श्रद्धांजलि देने के लिए पत्रकारों और समाज के प्रबुद्ध जनों का ताँता लगा हुआ है। पार्थ के निधन से हर किसी के चेहरे पर अपूरणीय क्षति का दर्द साफ झलक रहा है।पार्थ के योगदान को याद करते हुए पत्रकार समुदाय और समाज के प्रतिष्ठित जन उनके प्रति अपनी संवेदनाएँ व्यक्त कर रहे हैं। समाज के हर वर्ग से लोग आकर पार्थ की आत्मा की शांति और परिवार को संबल देने की प्रार्थना कर रहे हैं।

Sudeept Mani Tripathi

Sudeept Mani Tripathi

About Author

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से हिंदी पत्रकारिता में परास्नातक। द लोकतंत्र मीडिया फाउंडेशन के फाउंडर । राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर लिखता हूं। घूमने का शौक है।

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