द लोकतंत्र: बिहार की राजनीति में ‘जंगलराज’ का मुद्दा दशकों से चुनावी बहस का अहम हिस्सा रहा है। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल को विपक्ष लगातार जंगलराज कहता आया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा नेता इस मुद्दे को बार-बार उठाते रहे हैं। अब जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने इस बहस में नया मोड़ देते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भी जंगलराज से जोड़ने की कोशिश की है।
प्रशांत किशोर का कहना है कि कांग्रेस के समर्थन से लालू यादव ने 15 साल तक बिहार में जंगलराज चलाया। उनका आरोप है कि कांग्रेस के 45 साल के शासन में भी बिहार देश का सबसे गरीब राज्य बना रहा। वे सवाल उठाते हैं कि जब लालू यादव का शासन अपराध और अव्यवस्था के लिए बदनाम था, तब कांग्रेस और राहुल गांधी ने कानून-व्यवस्था पर सवाल क्यों नहीं उठाए।
राहुल गांधी से माफी की मांग
प्रशांत किशोर ने रोहतास में अपने बयान में कहा कि राहुल गांधी को बिहार में जंगलराज के लिए जनता से माफी मांगनी चाहिए, तभी यहां आकर राजनीति करनी चाहिए। उनका आरोप है कि राहुल गांधी को बिहार सिर्फ चुनाव के समय याद आता है, जबकि चुनाव खत्म होते ही वे गायब हो जाते हैं।
उन्होंने यह भी सवाल किया कि क्या राहुल गांधी ने कभी बिहार के किसी गांव में एक रात भी बिताई है या यहां के लोगों की मुश्किलें करीब से देखी हैं।
राजनीतिक समीकरण और असर
विश्लेषकों का मानना है कि प्रशांत किशोर के इस बयान से नीतीश कुमार और भाजपा दोनों को राजनीतिक फायदा हो सकता है। जंगलराज का मुद्दा भाजपा भी लंबे समय से तेजस्वी यादव और आरजेडी के खिलाफ इस्तेमाल करती रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो तेजस्वी को “जंगलराज का युवराज” तक कह चुके हैं।
अब जब प्रशांत किशोर इस मुद्दे पर राहुल गांधी को भी घेर रहे हैं, तो यह भाजपा के नैरेटिव को और मजबूती दे सकता है। साथ ही, कांग्रेस और आरजेडी के रिश्तों में भी खटास बढ़ सकती है, जो महागठबंधन की एकता के लिए चुनौती बन सकती है।
क्या है प्रशांत किशोर की रणनीति?
कुछ जानकार मानते हैं कि यह प्रशांत किशोर का राष्ट्रीय राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास हो सकता है। तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार को निशाना बनाने से यह मुद्दा क्षेत्रीय सीमा में रह जाता, लेकिन राहुल गांधी पर हमला करने से इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर हो सकता है।
बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा और बयानबाज़ी यह साफ़ संकेत देती है कि वे राज्य की राजनीति में सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ अपनी राजनीतिक पकड़ भी बढ़ाना चाहते हैं।