संजय कुमार सिंह/ बनियापुर : बिहार, वह भूमि जहां चाणक्य की रणनीति ने सम्राटों को गढ़ा, जहां बुद्ध और महावीर के उपदेशों ने दुनिया को शांति का मार्ग दिखाया। शिक्षा, संस्कृति और आध्यात्म की यह धरती आज एक असमंजस के दौर से गुज़र रही है। कभी नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों का केंद्र रहा यह राज्य, अब बेरोज़गारी, अपराध, पलायन और नशे जैसी विकट समस्याओं के घेरे में है। सवाल यह नहीं है कि बिहार में संभावनाएँ हैं या नहीं, बल्कि यह है कि हम उन संभावनाओं को साकार करने के लिए कितनी दूरदृष्टि और ईमानदारी से प्रयास कर रहे हैं।
औद्योगिकीकरण और रोजगार
बिहार की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहाँ युवाओं की भरमार है, परंतु उन्हें अवसर देने वाला तंत्र लगभग निष्क्रिय है। करोड़ों युवा डिग्रियाँ लेकर हर वर्ष बाहर निकलते हैं लेकिन राज्य में न तो उनके लिए उद्योग हैं, न ही कौशल विकास के पर्याप्त केंद्र। उद्योगों की अनुपस्थिति ने अर्थव्यवस्था को जड़ बना दिया है। ‘रोज़गार नहीं तो पलायन, और पलायन नहीं रुका तो बिहार का विकास सपना ही रह जाएगा।’ औद्योगीकरण को गति देना, स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देना और लोकल संसाधनों पर आधारित इकाइयों को बढ़ावा देना अब समय की माँग है।
कानून व्यवस्था और बढ़ता अपराध
बिहार की एक और गंभीर चिंता है गिरती कानून व्यवस्था। अपराध के मामले बढ़ रहे हैं, हत्या और महिलाओं की सुरक्षा पर भी लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। यदि समाज भयमुक्त नहीं होगा तो न निवेश आएगा, न सामाजिक स्थिरता। पुलिस तंत्र को आधुनिक बनाना, केस डिस्पोजल को तेज करना और अपराधियों पर कठोर कार्रवाई अनिवार्य है। लेकिन, मौजूदा सरकार की जो नीति और नीयत है वह संदेह पैदा करती है कि बिहार में नीतीश राज में ‘जंगलराज’ ख़त्म होगा भी या नहीं।
शराबबंदी और नशाखोरी
सुशासन बाबू का शासन कैसे कुशासन में बदल गया इसका प्रत्यक्ष प्रमाण बिहार में जारी कथित शराबबंदी है। हालाँकि, शराबबंदी नैतिक दृष्टिकोण से सराहनीय निर्णय था, पर इसके क्रियान्वयन में काफ़ी ग़लतियाँ हुईं। परिणामस्वरूप न केवल राज्य के राजस्व में भारी गिरावट आई, बल्कि अवैध शराब और सिंथेटिक ड्रग्स का कारोबार गाँव-गाँव फैल गया। आज बिहार का युवा वर्ग, जो कल राज्य की रीढ़ था, ड्रग्स की गिरफ्त में फँसता जा रहा है। सरकार को चाहिए था कि शराबबंदी के साथ-साथ व्यसनमुक्ति केंद्रों की स्थापना, पुनर्वास कार्यक्रम और जन-जागरूकता अभियानों पर विशेष ध्यान देती लेकिन वो कहते हैं ना कि जब नीयत में खोट हो तो नीति कहाँ बेहतर हो सकती है। नतीजा भयावह रूप से हमारे सामने है।
युवाओं की दिशा और शिक्षा का संकट
बिहार का युवा आज ग़लत राह की ओर जा रहा है। उन्हें न शिक्षा में रुचि है, न खेल-कूद में, और न ही करियर को लेकर स्पष्टता। नशा, बेरोज़गारी और सामाजिक उपेक्षा मिलकर एक पूरे युवा वर्ग को खोखला कर रहे हैं। यह समय है कि शिक्षा के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य, लाइफ स्किल्स और रोजगारपरक प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी जाए। लेकिन, बिहार में इतना कौन सोचता है। सरकारें बस बिहार के रहवासियों को बेवकूफ बनाकर स्थिति बद से बदतर करती जा रही हैं।
नागरिकों को ज़िम्मेदारी से करना होगा वोट
अब जब बिहार विधानसभा चुनाव की आहट है, तब एक नागरिक के तौर पर हमारी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। हर वोट सिर्फ एक जनप्रतिनिधि नहीं चुनता, वह एक विचार, एक दिशा, एक नीति का समर्थन करता है। हमें ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुनना होगा जिनके पास बिहार के लिए स्पष्ट सोच हो, जो जाति या धर्म की राजनीति न करें, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर काम करें। चुनाव सिर्फ़ सत्ता परिवर्तन नहीं, नीति परिवर्तन का अवसर है। हर वोट, बिहार के भविष्य की दिशा तय करता है। जाति, धर्म और भावनात्मक नारों से ऊपर उठकर अब हमें ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुनना होगा जो सुशासन, पारदर्शिता और विकास की ईमानदार सोच रखते हों। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, कृषि, तकनीक और उद्योग के क्षेत्र में जिनका एजेंडा स्पष्ट हो, वही बिहार को नई दिशा दे सकते हैं।
बिहार को बदलने की शुरुआत बिहारी नागरिक की सोच से होगी। जय बिहार फाउंडेशन ट्रस्ट के माध्यम से हम यही प्रयास कर रहे हैं कि जागरूकता फैले, चर्चा हो, सवाल उठें और समाधान तलाशे जाएँ। यह चुनाव बिहार के लिए सिर्फ एक सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि विकास की दिशा तय करने का अवसर है। आइए, अपने वोट से बिहार को एक नया भविष्य दें एक ऐसा बिहार जो सिर्फ इतिहास में नहीं, भविष्य में भी गर्व से खड़ा हो। जय बिहार फाउंडेशन ट्रस्ट के माध्यम से हम गाँव-गाँव संवाद की कोशिश कर रहे हैं। जनचेतना को बढ़ावा देना, युवाओं को सशक्त बनाना और लोकतांत्रिक सोच को मज़बूत करना हमारा संकल्प है।
बिहार अब बदलना चाहिए और बदलाव की शुरुआत आपसे है। अपने एक वोट से आप बिहार के भविष्य को संवार सकते हैं।
सोचिए, समझिए और सही को चुनिए। क्योंकि एक जागरूक नागरिक ही परिवर्तन का वाहक होता है।
यह आर्टिकल संजय कुमार सिंह ने लिखी है। वे जनहितैषी सोच वाले सामाजिक कार्यकर्ता और जय बिहार फाउंडेशन ट्रस्ट के संस्थापक हैं, जो वर्षों से बिहार के युवाओं, किसानों और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित रूप से कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अपने ट्रस्ट के माध्यम से सैकड़ों युवाओं को निजी क्षेत्रों में रोज़गार दिलाने में मदद की है।