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बढ़ती जनसंख्या बनाम घटती सुविधाएं, दिल्ली का संतुलन बिगड़ता क्यों जा रहा है?

Increasing population vs decreasing facilities, why is Delhi's balance deteriorating?

द लोकतंत्र/ एहसान ख़ान : दिल्ली, एक समय था जब ये शहर खुले आसमान, बग़ीचों की हरियाली और फ़िज़ाओं में घुली रवायतों के लिए जाना जाता था। लेकिन बदलते वक़्त के साथ धुँधलके में कहीं खो गई वह दिल्ली। ‘दिल वालों की दिल्ली’ की पहचान अब शोर, भीड़, धुंध और थकते इंसानी चेहरों में कहीं खोती जा रही है। 2025 की शुरुआत तक, भारत की राजधानी की जनसंख्या 3.32 करोड़ के पार पहुंच चुकी है, जो इसे देश का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर बनाती है, मुंबई के ठीक बाद। ये आंकड़ा नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (NSO) और दिल्ली सरकार के योजना विभाग की हालिया रिपोर्ट से सामने आया है।

बढ़ रही आबादी, घट रही सुविधाएँ :

दिल्ली की आबादी 1.7% वार्षिक दर से बढ़ रही है। हर साल लगभग 5 से 6 लाख लोग दिल्ली की ओर पलायन कर रहे हैं जिनमें अधिकांश उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पश्चिम बंगाल से आते हैं। कारण स्पष्ट हैं- रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता। NCR क्षेत्र में 60 लाख से अधिक प्रवासी मजदूर असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं (स्रोत: DUSIB 2024)। शहर में 11 विश्वविद्यालय, सैकड़ों कॉलेज, और AIIMS, RML, GTB जैसे बड़े अस्पताल दिल्ली को ‘गेटवे टू सर्वाइवल’ बना देते हैं।

लेकिन यह जनसंख्या विस्फोट एक चुपचाप पल रहे संकट को जन्म दे चुका है। सबसे पहला असर आवास संकट के रूप में सामने आया है। बीते 5 वर्षों में दिल्ली में किराए 30–40% तक बढ़े हैं (स्रोत: MagicBricks Report 2024)। शहर में 1.8 करोड़ से अधिक लोग अवैध कॉलोनियों या झुग्गियों में रहते हैं, जहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है।

परिवहन प्रणाली पर बोझ अलग ही कहानी कहता है। दिल्ली मेट्रो प्रतिदिन 70 लाख से अधिक यात्रियों को ढोती है, और ट्रैफिक इतना गाढ़ा हो चुका है कि औसत गति 17–19 किमी/घंटा रह गई है (स्रोत: MoRTH 2024)। हर लाल बत्ती अब एक इनहेलर का इश्तिहार बन चुकी है। पानी और बिजली की आपूर्ति भी इस दबाव में चरमराने लगी है। दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार, जहां शहर की मांग 1,250 MGD है, वहीं उपलब्धता सिर्फ 950 MGD तक सीमित है। गर्मियों में कई कॉलोनियों में 12–16 घंटे की बिजली कटौती आम हो चुकी है।

दिल्ली का हाल बेहाल, बन चुकी है संघर्षों की प्रयोगशाला

सबसे भयावह स्थिति प्रदूषण की है। IQAir की 2024 की रिपोर्ट ने एक बार फिर दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी घोषित किया है। PM 2.5 का स्तर WHO मानकों से 9 गुना अधिक पाया गया। और इस सबके बीच, स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं। एक सरकारी डॉक्टर पर 3,000 से अधिक मरीज, और OPD में इलाज के लिए 2–3 हफ्ते की वेटिंग, इस व्यवस्था की चरमराती हड्डियों की गवाही देते हैं।

दिल्ली अब सिर्फ राजधानी नहीं, संघर्षों की प्रयोगशाला बन चुकी है जहां हर नागरिक, हर सांस के लिए जूझ रहा है। यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं, जीवन की गुणवत्ता का सवाल है। अगर नीति निर्माता, शहरी योजनाकार और समाज एक साथ न चेते तो ‘दिल वालों की दिल्ली’ जल्द ही एक ‘दम घुटती दिल्ली’ में बदल जाएगी।


इस आर्टिकल के लेखक एहसान ख़ान पत्रकारिता के छात्र हैं और पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं। इस लेख में दी गई जानकारी उन्होंने जुटायी है और लेख को तैयार किया है। इससे जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।

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