द लोकतंत्र/ उमा पाठक : हाल के दिनों में, भारतीय दर्शकों के बीच पाकिस्तानी सीरियल्स का क्रेज़ बढ़ा है। ख़ासतौर पर ‘कभी मैं कभी तुम’ जैसे डेली सोप्स ने भारतीय टीवी परिदृश्य में एक नई हलचल पैदा की है। यह सिर्फ एक शो तक सीमित नहीं है बल्कि ‘हमसफर,’ ‘जिंदगी गुलज़ार है,’ और ‘मेरे पास तुम हो’ जैसे कई पाकिस्तानी धारावाहिकों ने भी भारतीय दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बना ली है। ऐसे में, सवाल उठता है कि आखिर इन पाकिस्तानी सीरियल्स ने कैसे भारतीय दर्शकों को इतना आकर्षित कर लिया है, जबकि भारतीय धारावाहिक धीरे-धीरे अपने पुराने जादू को खोते जा रहे हैं?
पाकिस्तानी धारावाहिकों ने भारतीय दिलों को जीत लिया है
चलिए इसका जवाब भी हम दे देते हैं। दरअसल, पाकिस्तानी सीरियल्स की सफलता का मुख्य कारण उनकी कहानी का वास्तविकता के करीब होना है। पाकिस्तानी धारावाहिकों में जहां सामाजिक मुद्दों को गंभीरता से उठाया जाता है, रिश्तों की बारीकियों को गहराई से पेश किया जाता है, कहानी सधी हुई एक लय में चलते हैं, अनावश्यक खींचतान और भ्रामक घटनाएं नहीं होतीं। वहीं इसके विपरीत, भारतीय सीरियल्स की कहानियाँ कई बार लंबे अनावश्यक खींचाव और अवास्तविक घटनाओं का शिकार बन जाती हैं, जिससे दर्शक ऊब जाते हैं। जब दर्शक एक ही धारावाहिक में बार-बार किरदारों की मृत्यु और पुनर्जीवित होने जैसे असंगत और अतार्किक घटनाओं को देखते हैं, तो उनका ध्यान भटकता है।
पाकिस्तानी सीरियल्स के प्रति भारतीय दर्शकों के खिंचाव का दूसरा महत्वपूर्ण कारण किरदारों का वास्तविक और सजीव चित्रण है। इनमें पात्रों की भावनाओं को जीवंत तरीके से दर्शाया जाता है, जिससे दर्शक खुद को उनसे आसानी से जोड़ पाने में सहज होते हैं। संवाद सरल और रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े होते हैं, जो दर्शकों को इन पात्रों के साथ संबंध स्थापित करने में मदद करते हैं। दूसरी ओर, भारतीय धारावाहिकों में किरदार कई बार अतिरंजित, अवास्तविक और बेवजह के फ़िलर होते हैं, जिससे दर्शकों को उनसे जुड़ने में कठिनाई होती है।
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इसके अलावा, पाकिस्तानी सीरियल्स की सबसे बड़ी विशेषता उनके सीमित एपिसोड्स हैं। इन धारावाहिकों में कथा को संक्षेप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे दर्शक अंत तक उत्साहित रहते हैं। जबकि भारतीय सीरियल्स अक्सर TRP की दौड़ में अनावश्यक खींचतान के शिकार हो जाते हैं, जिससे कहानी का प्रवाह बाधित होता ही है साथ ही दर्शकों की दिलचस्पी भी मर जाती है।
इण्डियन टीवी इंडस्ट्री को पाकिस्तानी धारावाहिकों से सीखने की ज़रूरत
भारतीय टीवी की मौजूदा स्थिति पर एकता कपूर का उल्लेख करना बेहद ज़रूरी हो जाता है। यह सही है कि एकता ने भारतीय टीवी को एक नई दिशा दी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनके सीरियल्स में कहानी की गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है। उनके शो अब लंबे खींचाव, बेमतलब के ट्विस्ट, और बार-बार एक ही प्लॉट को दोहराने का शिकार हो गए हैं। एक अच्छी कहानी, नये प्लॉट्स जैसे उनके सीरियल्स से ग़ायब ही हो गए हैं। जबकि एक अच्छे सीरियल की आवश्यकता होती है कि वह दर्शकों की जिज्ञासा को बनाए रखे। कभी टीवी इंडस्ट्री की क्वीन रही एकता कपूर के धारावाहिक अब आमतौर पर पूर्वाग्रहित और अविश्वसनीय लगते हैं।
पाकिस्तानी धारावाहिकों से एकता कपूर को कुछ महत्वपूर्ण सबक सीखने की आवश्यकता है। ये धारावाहिक कहानी को सजीवता और सरलता के साथ प्रस्तुत करते हैं। अगर भारतीय धारावाहिक निर्माता इस दृष्टिकोण को अपनाते हैं, तो निश्चित रूप से वे दर्शकों का दिल फिर से जीत सकते हैं। उन्हें यह समझना होगा कि दर्शक अब सशक्त, यथार्थवादी और रोचक कहानियों की तलाश कर रहे हैं।
इस बदलते परिदृश्य में, भारतीय टीवी निर्माताओं को दर्शकों की बदलती प्राथमिकताओं को समझना होगा। वे अब पुराने ढर्रे की कहानियों में रुचि नहीं रखते; उन्हें ऐसी कहानियों की आवश्यकता है जो उन्हें भावनात्मक रूप से जोड़ें और वास्तविकता की छवि पेश करें। अगर भारतीय धारावाहिकों में नयापन और सशक्तता नहीं आई, तो दर्शक धीरे-धीरे उनसे मुंह मोड़ लेंगे और ओटीटी प्लेटफार्मों की ओर बढ़ेंगे, जहां बेहतर कंटेंट भरे पड़े हैं।
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इस आर्टिकल की लेखिका उमा पाठक पेशेवर पत्रकार हैं और मौजूदा समय में असिस्टेंट प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं। इस लेख में उन्होंने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।