द लोकतंत्र: ICICI बैंक की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) चंदा कोचर को एक अपीलेट ट्रिब्यूनल ने वीडियोकॉन ग्रुप को 300 करोड़ रुपये का लोन पास करने के बदले 64 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का दोषी पाया है। यह रिश्वत चंदा कोचर के पति दीपक कोचर के जरिए, एक संबंधित कंपनी के माध्यम से ली गई थी। ट्रिब्यूनल ने इसे ‘quid pro quo’ यानी “कुछ के बदले कुछ” का स्पष्ट मामला करार दिया है।
क्या है पूरा मामला?
ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने चंदा कोचर पर आरोप लगाया था कि उन्होंने ICICI बैंक की आंतरिक नीतियों का उल्लंघन करते हुए वीडियोकॉन ग्रुप को 300 करोड़ का लोन मंजूर किया। ट्रिब्यूनल ने इस दावे को सही माना और कहा कि चंदा कोचर ने अपने पति के वीडियोकॉन से कारोबारी संबंधों को छुपाया, जो कि बैंक की कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट नीति के खिलाफ था।
ट्रांजैक्शन की टाइमलाइन
जैसे ही ICICI बैंक द्वारा वीडियोकॉन को 300 करोड़ रुपये का लोन स्वीकृत किया गया, उसके अगले ही दिन वीडियोकॉन की सहायक कंपनी SEPL से 64 करोड़ रुपये की रकम NRPL नामक कंपनी में ट्रांसफर कर दी गई। इस कंपनी का नियंत्रण चंदा कोचर के पति दीपक कोचर के पास था, हालांकि कागज़ों पर मालिकाना हक वेणुगोपाल धूत (Videocon चेयरमैन) के नाम था।
ट्रिब्यूनल ने बताया पावर का दुरुपयोग
ट्रिब्यूनल ने यह भी माना कि यह ट्रांजैक्शन सिर्फ एक कारोबारी लेन-देन नहीं था, बल्कि एक सीधा रिश्वत का मामला था। इस प्रक्रिया को “पावर का दुरुपयोग और नैतिकता का उल्लंघन” बताया गया।
ट्रिब्यूनल ने 2020 में संपत्ति रिलीज़ करने के एक फैसले को भी खारिज किया, जिसमें 78 करोड़ रुपये की संपत्ति को चंदा और दीपक कोचर से हटाया गया था। ट्रिब्यूनल ने कहा कि उस फैसले में ईडी द्वारा दिए गए सबूतों को नजरअंदाज किया गया था, जबकि ईडी ने पूरी टाइमलाइन और मनी ट्रेल के साथ ठोस केस प्रस्तुत किया था।