द लोकतंत्र: देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई में इन दिनों दो अलग-अलग लेकिन चर्चित विवाद सुर्खियों में हैं। दिल्ली में आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख और मुंबई में कबूतरों को दाना खिलाने पर बॉम्बे हाईकोर्ट की पाबंदी। दोनों ही मामलों में कोर्ट के फैसलों के बाद सामाजिक, धार्मिक और पर्यावरणीय बहस तेज हो गई है।
दिल्ली में आवारा कुत्तों पर सख्ती
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर की सड़कों को आवारा कुत्तों से मुक्त करने के निर्देश दिए हैं। आदेश के तहत सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर डॉग शेल्टर में भेजा जाएगा, उनकी नसबंदी और वैक्सीनेशन की जाएगी। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि कार्रवाई में बाधा डालने वालों पर अवमानना की कार्यवाही होगी।
यह कदम बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है, क्योंकि हाल के वर्षों में कुत्तों के काटने और रेबीज के मामलों में वृद्धि हुई है। हालांकि, कई पशु अधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं ने इसका विरोध किया है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी का कहना है कि दिल्ली में तीन लाख से अधिक आवारा कुत्ते हैं, और सभी को शेल्टर में रखना आर्थिक और संसाधन दृष्टि से अव्यावहारिक है। उन्होंने चेतावनी दी कि कुत्तों को हटाने से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ सकता है, जैसे बंदरों और चूहों की संख्या बढ़ना। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस आदेश को “क्रूर और अदूरदर्शी” बताया, और सामुदायिक देखभाल व नसबंदी पर जोर दिया।
मुंबई में कबूतरों पर रोक
दूसरी ओर, बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य कारणों से मुंबई में कबूतरों को दाना खिलाने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने माना कि कबूतरों की बीट से सांस संबंधी गंभीर बीमारियां फैल सकती हैं। आदेश के बाद बीएमसी ने कई कबूतरखाने बंद कर दिए और नियम तोड़ने वालों पर जुर्माना लगाया।
यह फैसला धार्मिक और सामाजिक विवाद का रूप भी ले चुका है। जैन समाज और कई पक्षी प्रेमी इस पाबंदी का विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि कबूतरों को दाना खिलाना उनके धर्म और परंपरा का हिस्सा है। जैन मुनि नीलेश चंद्र विजय ने चेतावनी दी कि अगर जरूरत पड़ी तो वे भूख हड़ताल करेंगे।
बहस के केंद्र में पशु अधिकार बनाम जन स्वास्थ्य
दिल्ली और मुंबई के ये मामले एक बार फिर इस बहस को तेज करते हैं कि जन स्वास्थ्य, सुरक्षा और पशु अधिकारों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। जहां एक ओर इंसानी सुरक्षा अहम है, वहीं पशुओं के साथ संवेदनशील व्यवहार भी जरूरी है।