द लोकतंत्र/ नई दिल्ली : भारत में एक बार फिर बेरोज़गारी की रफ़्तार तेज़ हो गई है। मई 2025 में देश की औसत बेरोज़गारी दर बढ़कर 5.6 फीसदी तक पहुंच गई है, जो अप्रैल में 5.1 फीसदी थी। इस उछाल का सबसे बड़ा असर युवाओं पर पड़ा है, खासकर 15 से 29 वर्ष की आयु वर्ग के बीच, जहां बेरोज़गारी दर 13.8 फीसदी से बढ़कर 15 फीसदी हो गई है। सबसे चिंताजनक स्थिति युवतियों की है, जिनमें बेरोज़गारी की दर 16.3 फीसदी तक पहुंच गई है। ऐसे में जब देश महंगाई की मार से जूझ रहा है, बेरोज़गारी की बढ़ती दर युवाओं के लिए दोहरी चुनौती बनकर सामने आई है।
सीमित नौकरियों के कारण युवाओं को करना पड़ रहा बेरोज़गारी का सामना
शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में रोजगार संकट गहराता जा रहा है। शहरी भारत में बेरोज़गारी दर 17.2 फीसदी से बढ़कर 17.9 फीसदी हो चुकी है, वहीं गांवों में यह आंकड़ा 13.7 फीसदी तक पहुंच गया है। खेती-किसानी से जुड़ी नौकरियों में भारी गिरावट आई है। अप्रैल में जहां 45.9 फीसदी लोग कृषि कार्यों में लगे थे, अब यह संख्या घटकर 43.5 फीसदी हो गई है। नतीजतन, बड़ी संख्या में ग्रामीण युवा अब उद्योग और सेवा क्षेत्रों में अवसर तलाश रहे हैं, लेकिन सीमित नौकरियों के कारण उन्हें बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है।
महिलाओं की भागीदारी में भी गिरावट दर्ज की गई है। ग्रामीण भारत में महिलाओं का श्रम बाज़ार में भाग लेना, यानी लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR), 38.2 फीसदी से घटकर 36.9 फीसदी हो गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अब पहले से कम महिलाएं खेतों में मजदूरी या घरेलू श्रम में शामिल हैं। वर्कफोर्स पार्टिसिपेशन रेट (WPR) भी देशभर में घटकर 51.7 फीसदी हो गया है, जो अप्रैल में 52.8 फीसदी था। महिलाओं के लिए यह आंकड़ा और भी चिंताजनक है, जो अब 31.3 फीसदी रह गया है।
पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के मई संस्करण में खुलासा
यह तस्वीर पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के मई संस्करण से सामने आई है, जिसे पहली बार मासिक आधार पर जारी किया गया है। यह सर्वेक्षण देश के 89,000 से अधिक घरों और करीब 3.8 लाख लोगों से बातचीत कर तैयार किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बेरोज़गारी सिर्फ मौसमी बदलावों का नतीजा नहीं, बल्कि गहराते आर्थिक असंतुलन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सुस्ती का संकेत है।
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बता दें, रोज़गार केवल आय का साधन नहीं है, बल्कि यह सम्मानजनक और गरिमामय जीवन जीने की बुनियाद है। जब देश की युवा आबादी हाथ में डिग्रियां लेकर नौकरी की तलाश में भटकेगी, तो न केवल उनकी आर्थिक स्थिरता डगमगाएगी बल्कि सामाजिक संरचना पर भी गंभीर असर पड़ेगा। महंगाई के मौजूदा दौर में जब आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं, तब स्थायी और सुरक्षित रोज़गार ही वह आधार है जिससे परिवार अपनी मूलभूत ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं।
बढ़ती बेरोज़गारी को देखते हुए यह ज़रूरी हो गया है कि सरकार नए रोज़गार सृजन की ठोस योजनाएं बनाए। स्किल डेवलपमेंट, स्वरोजगार को बढ़ावा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पुनर्जागरण जैसी पहलों पर तेज़ी से अमल हो। अगर समय रहते सुधार नहीं हुए, तो यह संकट न सिर्फ युवाओं की ऊर्जा को निगल जाएगा, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के सपने को भी धूमिल कर देगा।